Tuesday 9 January 2018

क्रियाविशेषण | क्रियाविशेषण के भेद | ​अव्यय ​- 1


अव्यय – ‘अ + व्यय’ ; जो व्यय न हो उसे अव्यय कहते हैं , इसे अविकारी शब्द कहते हैं , क्योंकि इसके रूप में लिंग , वचन , पुरुष , कारक के कारण किसी प्रकार का विकार नहीं हो सकता , ये सदैव समान रहते हैं |

जैसे - जब , तब , अभी , उधर , वहाँ इत्यादि शब्द अव्यय हैं |

क्रियाविशेषण – जो शब्द क्रिया के अर्थ में विशेषता प्रकट करते हैं , उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं |

जैसे – धीरे चलो |

वाक्य में ‘धीरे’ शब्द ‘चलो’ क्रिया की विशेषता बतलाता है अत: ‘धीरे’ शब्द क्रियाविशेषण है |



क्रियाविशेषण के भेद - 

1. रीतिवाचक क्रियाविशेषण – जिन शब्दों से क्रिया की रीति ( काम करने का तरीका ) संबंधी विशेषता प्रकट होती है , उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं | जिन क्रियाविशेषणों का समावेश दूसरे वर्गों में नहीं हो सकता , उनकी गणना इसी में की जाती है | इन्हें इस प्रकार बाँटा जा सकता है –

प्रकार – ऐसे , कैसे , वैसे , मानो , अचानक , धीरे – धीरे , परस्पर , आपस में , यथाशक्ति , फटाफट , झटपट आदि |
निश्चय – नि:संदेह, अवश्य , बेशक , सही , सचमुच , जरूर , यथार्थ में , वस्तुत:, दरअसल आदि |
अनिश्चय – कदाचित , शायद , संभव है , हो सकता है आदि |
स्वीकार – हाँ , हाँ जी , ठीक , सच आदि |
निषेध – नहीं , मत , गलत , झूठ आदि |
कारण – इसलिए , क्यों आदि |
अवधारण – तो , ही , भी , मात्र , भर आदि

2. स्थानवाचक क्रियाविशेषण – जिन शब्दों से क्रिया में स्थान संबंधी विशेषता प्रकट हो अर्थात जिन शब्दों से क्रिया के होने के स्थान के विषय में पता चले तो उन्हें स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं ;

जैसे – यहाँ , वहाँ , जहाँ , कहाँ , वहीँ , कहीं , हर जगह , सर्वत्र , बाहर – भीतर , आगे – पीछे , ऊपर – नीचे आदि |

स्थानवाचक के दो भेद माने जाते हैं –
(क) स्थितिवाचक – यहाँ , वहाँ , भीतर , बाहर आदि |
(ख) दिशावाचक – इधर , उधर , दाएँ , बाएँ आदि |

3. कालवाचक क्रियाविशेषण - जिन शब्दों से क्रिया में समय संबंधी विशेषता प्रकट हो अर्थात जिन शब्दों से क्रिया के होने के समय के विषय में पता चले तो उन्हें कालवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं ;

जैसे – अब , कब , तब , जब , आज , कल , परसों , सुबह आदि |

कालवाचक के तीन भेद माने जाते हैं –
(क) समयवाचक – आज , कल , अभी , तुरंत , इत्यादि |

(ख) अवधिवाचक – अभी – अभी , रातभर , दिनभर , आजकल , नित्य इत्यादि |

(ग) बारंबारतावाचक – हर बार , कई बार , प्रतिदिन इत्यादि |



4. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण - जिन शब्दों से क्रिया में परिमाण संबंधी विशेषता प्रकट हो अर्थात जिन शब्दों से क्रिया के नाप – तौल के विषय में पता चले तो उन्हें परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं ;

जैसे – इतना , कितना , जितना, क्रमश: , पूर्णतया , बिल्कुल , लगभग आदि |

परिमाणवाचक के पाँच भेद माने जाते हैं –

(क) अधिकताबोधक – बहुत , खूब , अत्यंत , अति आदि
(ख) न्यूनताबोधक – जरा , थोड़ा, कुछ इत्यादि
(ग) पर्याप्तबोधक – बस , यथेष्ट , काफ़ी , इत्यादि
(घ) तुलनाबोधक – कम , अधिक , इतना , उतना आदि
(ङ) श्रेणीबोधक – बारी – बारी , तिल – तिल , थोड़ा – थोड़ा आदि

कुछ समानार्थक क्रियाविशेषणों का अंतर


1. अब – अभी – ‘अब’ में वर्तमान समय का अनिश्चय है और ‘अभी’ का अर्थ तुरंत से है ; 
अब – अब आप जा सकते हैं |
अभी – अभी चार बजे हैं |


2. तब – फिर – ‘तब’ बीते हुए समय का बोधक है और ‘फिर’ भविष्य की ओर संकेत करता है ; जैसे –

तब – तब की बात कुछ और थी | ( तब का अर्थ उस समय है )
फिर – फिर वह क्या कहेगा ? ( फिर का अर्थ दुबारा है )
3. कहाँ – कहीं – ‘कहाँ’ किसी निश्चित स्थान का बोधक है और ‘कहीं’ किसी अनिश्चित स्थान का परिचायक है ; जैसे –
कहाँ – वह कहाँ गया ?कहाँ राजा भोज , कहाँ गंगू तेली |कहीं – वह कहीं भी जा सकता है |
अन्य अर्थो में भी ‘कहीं’ का प्रयोग होता है –
(क) बहुत अधिक – यह पुस्तक उससे कहीं अच्छी है |
(ख) कदाचित् – कहीं बाघ न आ जाए |
(ग) विरोध – राम की माया , कहीं धूप कहीं छाया |



4. न – नहीं – मत – इनका प्रयोग निषेध अर्थ में होता है | ‘न’ से साधारण – निषेध और ‘नहीं’ से निषेध का निश्चय सूचित होता है | ‘मत’ का प्रयोग निषेधात्मक आज्ञा के लिए होता है | जैसे –

न – न तुम सोओगे , न वह | ( साधारण निषेध )
नहीं – मैं काम नहीं करूँगा | ( निश्चित निषेध )
मत – तुम यह काम मत करो | ( निषेधात्मक आज्ञा )


5. ही – भी – बात पर बल देने के लिए इनका प्रयोग होता है | अंतर यह है कि ‘ही’ का अर्थ एकमात्र और ‘भी’ का अर्थ अतिरिक्त सूचित करता है | जैसे –

ही – यह काम तुम ही कर सकते हो | ( एकमात्र अर्थ में )
भी – इस काम को तुम भी कर सकते हो | ( अतिरिक्त अर्थ में )

6. केवल – मात्र – ‘केवल’ अकेला का अर्थ और ‘मात्र’ संपूर्णता का अर्थ सूचित करता है ; जैसे – 
केवल – आज मैं केवल दूध पीकर रहूँगा | ( अकेला अर्थ में )मात्र – मुझे मात्र पाँच रूपये मिले | ( संपूर्णता के अर्थ में )

7. प्राय: - बहुदा – दोनों का अर्थ ‘अधिकतर’ है ,किन्तु ‘प्राय:’ से ‘बहुदा’ की मात्रा अधिक होती है ; जैसे –
प्राय: - बच्चे प्राय: खिलाड़ी होते हैं |
बहुदा – बच्चे बहुदा हठी होते हैं |

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