जैसा कि हिंदी साहित्य में आदिकाल की समय सीमा सातवीं शती के मध्य से लेकर चौदहवीं शती तक मानी जाती है और साहित्यिक परम्पराओं के निर्माण का काल है |
इस काल में संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में तो रचनाएँ हो ही रही थी, साथ ही अपभ्रंश से धीरे – धीरे मुक्त होती हुई हिंदी भी अपना रूप ग्रहण कर रही थी |
आदिकालीन हिंदी साहित्य की उपलब्ध सामग्री के दो वर्ग –
1. इसमें वे रचनाएँ हैं जिनकी भाषा अपभ्रंश के प्रभाव से मुक्त हिंदी नहीं है |
2. इसमें वे रचनाएँ हैं जिनकी भाषा अपभ्रंश के प्रभाव से मुक्त हिंदी है | जैसे बीसलदेव रासो, हम्मीर रासो, पृथ्वीराज रासो, खुसरो की पहेलियाँ आदि |
आदिकालीन हिंदी साहित्य का विभाजन कुछ इस प्रकार है –
1. सिद्ध साहित्य
- चौरासी सिद्धों की साहित्यिक रचनाएँ जो अपभ्रंश और तत्कालीन लोकभाषा के मिश्रण से लिखी गई रचनाएँ शामिल
- सिद्धों का संबंध बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा से
- प्रथम सिद्ध कवि सरहपा | पाखंड और आडंबर के घोर विरोधी परंतु सहज जीवन पर बल
- सरहपा के अलावा लुहिपा, कण्हपा, मीनपा आदि अन्य सिद्ध कवि |
2. जैन साहित्य
- साहित्य रचना आरंभ करने का श्रेय जैन कवियों को
- जैन मत की रचनाओं के प्रकार –
1. जिनमें अन्तस्सधना, उपदेश, नीति, सदाचार पर बल दिया जाता है और कर्मकांड का खंडन है, ये मुक्तक हैं |
2. जिनमें पौराणिक, जैन साधकों की प्रेरक जीवन कथा या लोक प्रचलित कथाओं को आधार बनाकर जैन मत का प्रचार किया गया है |
2. जिनमें पौराणिक, जैन साधकों की प्रेरक जीवन कथा या लोक प्रचलित कथाओं को आधार बनाकर जैन मत का प्रचार किया गया है |
- रासक या रासो काव्यों की परम्परा का प्रादुर्भाव जैन कवियों द्वारा
- उपदेश रसायन, बुद्धि रास, जीवदया रास, चंदनबाला रास, सप्तक्षेत्रि रासु आदि ऐसे ही रासो ग्रंथ हैं |
3. नाथ साहित्य
- नाथ पंथ के प्रवर्तक गोरखनाथ
- नाथ पंथ सिद्धों की परम्परा का ही विकसित रूप
- संत साहित्य की पृष्ठभूमि का निर्माण गोरखनाथ द्वारा
- कबीर आदि संत कवियों में आक्रामक भाषा की जो दीप्ति दिखाई देती है, गोरखनाथ से मिलती है |
4. संत काव्य
- चक्रधर, ज्ञानेश्वर तथा नामदेव आदि कवियों के हिंदी पद
- आत्मानुभूति के प्रकाशन की प्रवृत्ति
- संत कवियों द्वारा मुक्तक शैली को महत्त्व
5. रासो काव्य
- हिंदी में रासो काव्यों की श्रृंखला लंबी
- पृथ्वीराज रासो, बीसलदेव रासो, हम्मीर रासो, परमाल रासो, विजयपाल रासो, खुमाण रासो आदि प्रमुख ग्रंथ हैं |
- वीर रस को प्रमुख स्थान
- रासो काव्यों की विषय वस्तु राजाओं के चरित एवं उनकी प्रशंसा
- पृथ्वीराज रासो के कवि चंदबरदाई प्रथम महाकवि
6. लौकिक साहित्य
- ढोला – मारू रा दूहा एक लोकभाषा काव्य है
- वसंत – विलास में चौरासी दोहों में बसंत और स्त्रियों पर उसके विलासपूर्ण प्रभाव का मनोहारी चित्रण