जिन स्वरों के उच्चारण में मुख के साथ - साथ नासिका की भी सहायता लेनी पड़ती है| अर्थात् जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है वे अनुनासिक कहलाते हैं |
इनका चिह्न चन्द्रबिन्दु →

यह ध्वनि (अनुनासिक) वास्तव में स्वरों का गुण होती है |
अ, आ, उ, ऊ, तथा ऋ स्वर वाले शब्दों में अनुनासिक लगता है ; जैसे –
कुआँ, चाँद , अँधेरा आदि
इन सभी शब्दों में अनुनासिक लगाया गया है ||
अनुनासिक के स्थान पर अनुस्वार (बिंदु) का प्रयोग – जिन स्वरों में शिरोरेखा के ऊपर मात्रा – चिह्न आते हैं, वहाँ अनुनासिक के लिए जगह की कमी के कारण अनुस्वार बिंदु लगाया जाता है | जैसे –
Note- शब्द के ऊपर खींची जाने वाली लाइन शिरोरेखा कहलाती है |इस नियम को उदाहरणों के माध्यम से समझेंगे -
इन सभी शब्दों में जैसा कि हम देख रहे हैं कि शिरोरेखा से ऊपर मात्रा-चिह्न लगे हुए हैं – जैसे ‘नहीं’ में ई, ‘मैं’ में ऐ तथा ‘गोंद’ में ओ की मात्रा का चिह्न |
इन चिह्नों पर जब हम अनुनासिक का चिह्न लगा रहे हैं तो पाते हैं उनके लिए पर्याप्त स्थान नहीं है इसीलिए इन सभी मात्राओं के साथ अनुनासिक के स्थान पर अनुस्वार लगाया गया है | इससे उच्चारण में किसी प्रकार का अंतर नहीं आता |
विशेष ध्यान देने योग्य बातें – निम्नलिखित स्थितियों में अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता:
1. जिन शब्दों में भिन्न नासिक्य व्यंजन 'संयुक्त' होते हैं या पंचमाक्षर ‘द्वित्व’ होता है, वहाँ अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता :
जैसे – वा ङ् मय , जन्म , सम्मान आदि
इसी प्रकार 'जन्म' में भी दो भिन्न संयुक्त नासिक्य एक साथ आए हैं, जबकि सम्मान में पंचमाक्षर का द्वित्व है अर्थात नासिक्य व्यंजन है तो एक ही परन्तु ‘म्म’ द्वित्व है|
अत: इन सभी शब्दों में अनुस्वार का प्रयोग नहीं किया गया |
2. यदि पंचम वर्ण य, व, ह, से पूर्व आता है, तो उसका अनुस्वार रूप नहीं होता | जैसे -
पुण्य , समन्वय , तुम्हें आदि
इन सभी शब्दों में पंचमाक्षर ‘ण्’ , ‘न्’ तथा ‘म्’ के पश्चात् ‘य’, ‘व’ तथा ह का प्रयोग हुआ है इसलिए यहाँ अनुस्वार का प्रयोग नहीं किया गया |
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