Monday 12 June 2017

स्वर संधि (Swar Sandhi)




संधि संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है मेल | दो वर्णों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को संधि कहते हैं | दो वर्णों के पास – पास आने के फलस्वरूप जो विकार अथवा बदलाव आता है उसे ही संधि कहते हैं | जैसे –
हिम + आलय = हिमालय – स्वर संधि
वाक् + ईश = वागीश – व्यंजन संधि
मन : + रथ = मनोरथ – विसर्ग संधि


संधि के प्रकार

1. स्वर संधि
2. व्यंजन संधि
3. विसर्ग संधि

स्वर संधि

दो स्वरों के पास – पास आने से उत्पन्न हुए विकार को स्वर संधि कहते हैं | यह विकार पांच प्रकार का होता है | इसी अनुसार स्वर संधि पांच प्रकार की होती है |

1. दीर्घ संधि,
2. गुण संधि ,
3. वृद्धि संधि ,
4. यण संधि ,
5. अयादि संधि


1. दीर्घ संधि - जब एक स्वर के दो रूप ह्रस्व और दीर्घ एक दूसरे के बाद आ जाएं तो दोनों मिलकर उसका दीर्घ वाला स्वर हो जाते हैं ; जैसे – 

ह्रस्वस्वर + ह्रस्वस्वर = दीर्घ स्वर
अ + अ = आ सूर्य + अस्त = सूर्यास्त
धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
इ + इ = ई कवि + इंद्र = कवीन्द्र
रवि + इंद्र = रवीन्द्र
उ + उ = ऊ गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
विष्णु + उदय = विष्णूदय

ह्रस्वस्वर + दीर्घस्वर = दीर्घस्वर
अ + आ = आ देव + आलय = देवालय
धर्म + आत्मा = धर्मात्मा
इ + ई = ई गिरि + ईश = गिरीश
कपि + ईश = कपीश
उ + ऊ = ऊ लघु + ऊर्मि = लघूर्मि

दीर्घस्वर + ह्रस्वस्वर = दीर्घस्वर
आ + अ = आ  >>  विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
ई + इ = ई   >>  मही + इंद्र = महींद्र
ऊ + उ = ऊ  >>  वधू + उत्सव = वधूत्सव

दीर्घस्वर + दीर्घस्वर = दीर्घस्वर
आ + आ = आ  >>  विद्या + आलय = विद्यालय
ई + ई= ई  >>  नदी + ईश = नदीश
ऊ + ऊ = ऊ >>  सरयू + ऊर्मि = सरयूर्मि

2. गुण संधि - यदि अ आ के बाद इ ई आए तो ए हो जाता है , अ आ के बाद उ ऊ आए तो ओ हो जाता है तथा अ आ के बाद ऋ आए तो अर हो जाता है ; जैसे –
अ + इ = ए स्व + इच्छा = स्वेच्छा
आ + इ = ए महा + इंद्र = महेंद्र
अ + ई = ए परम + ईश्वर = परमेश्वर
आ + ई = ए रमा + ईश = रमेश 
इसी प्रकार 

अ + उ = ओ पर + उपकार = परोपकार
आ + उ = ओ महा + उदय = महोदय
अ + ऊ = ओ जल + ऊर्मि = जलोर्मि
आ + ऊ = ओ गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
अ + ऋ = अर सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
आ + ऋ = अर महा + ऋषि = महर्षि 

3. वृद्धि संधि - यदि अ आ के बाद ए ऐ आए तो ऐ हो जाता है तथा अ आ के बाद ओ औ आए तो दोनों के स्थान पर औ हो जाता है ; जैसे –
अ + ए = ऐ एक + एक = एकैक
आ + ए = ऐ तथा + एव = तथैव
अ + ऐ = ऐ मत + एक्य = मतैक्य
आ + ऐ = ऐ महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य 
इसी प्रकार
अ + ओ = औ जल + ओध = जलौध
आ + ओ = औ महा + ओज = महौज
अ + औ = औ वन + औषधि = वनौषधि
आ + औ = औ महा + औषधि = महौषधि

4. यण संधि - इ ई उ ऊ और ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर अर्थात असमान स्वर आए तो इ ई को य , उ ऊ को व तथा ऋ को र हो जाता है ; जैसे –
इ + अ = य अति + अधिक = अत्यधिक
इ + आ = या इति + आदि = इत्यादि
इ + उ = यु प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर
इ + ऊ = यू नि + ऊन = न्यून

इसी प्रकार

ई + अ = य नदी + अर्पण = नद्यर्पण
ई + आ = या सखी + आगमन = सख्यागमन
ई + उ = यु स्त्री + उपयोगी = स्त्र्युपयोगी
ई + ऊ = यू वाणी + ऊर्मि = वाण्यूर्मि

उ ऊ को व

उ + अ = व अनु + अय = अन्वय
उ + आ = वा सु + आगत = स्वागत
उ + इ = वि धातु + इक = धात्विक
ऊ + आ = वा वधू + आगम = वध्वागम
उ + ए = वे अनु + एषण = अन्वेषण

ऋ को र
ऋ + आ = रा
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
ऋ + उ = रु
पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश

5. अयादि संधि - ए ऐ ओ औ को बाद कोई असमान स्वर आए तो क्रमश: अय आय अव और आव हो जाता है ; जैसे –
ए + अ = अय
ने + अन = नयन
ऐ + अ = आय
नै + अक = नायक
ओ + अ = अव 
भो + अन = भवन
औ + अ = आव 
पौ + अक = पावक भौ + इक = भाविक

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