Sunday 23 July 2017

कर्मधारय समास


कर्मधारय समास



1. इसका उत्तरपद प्रधान होता है |

2. विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच में ‘के समान’ , ‘है जो’ , ‘रूपी’ में से किसी एक शब्द का प्रयोग होता है |

3. इस समास में पूर्वपद तथा उत्तरपद में विशेषण – विशेष्य का अथवा उपमान – उपमेय का सम्बन्ध माना जाता है |

विशेषण – विशेष्य का सम्बन्ध



विशेषण – जो विशेषता बताई जाए 

विशेष्य – जिसकी विशेषता बताई जाए जैसे -

पीताम्बर – पीला है जो अम्बर (
विशेषण -> पिला  और  विशेष्य -> अम्बर)
कृष्णसर्प – कृष्ण है जो सर्प (विशेषण -> कृष्ण   और  विशेष्य -> सर्प )

महाराज – महान है जो राजा
शुभागमन – शुभ है जो आगमन

सज्जन – सत् है जो जन
नीलगाय – नीली है जो गाय

महादेव – महान है जो देव
नीलकमल – नीला है जो कमल

उपमान – उपमेय का सम्बन्ध


उपमान – जिससे उपमा दी जाए 
उपमेय – जिसे उपमा दी जाए

जैसे -

कनकलता – कनक के समान लता (
उपमान->कनक और उपमेय ->लता)
कमलनयन – कमल के समान नयन
चरणकमल – कमल के समान चरण
प्राणप्रिय – प्राणों के समान प्रिय
भुजदंड – दंड के समान भुजा
मृगलोचन – मृग के समान लोचन

अन्य कुछ उदाहरण

वचनामृत – वचन रूपी अमृत
विद्याधन – विद्या रूपी धन
देहलता – देह रूपी लता
क्रोधाग्नि – क्रोध रूपी अग्नि



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