कर्मधारय समास
2. विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच में ‘के समान’ , ‘है जो’ , ‘रूपी’ में से किसी एक शब्द का प्रयोग होता है |
3. इस समास में पूर्वपद तथा उत्तरपद में विशेषण – विशेष्य का अथवा उपमान – उपमेय का सम्बन्ध माना जाता है |
विशेषण – विशेष्य का सम्बन्ध
विशेषण – जो विशेषता बताई जाए
विशेष्य – जिसकी विशेषता बताई जाए जैसे -
पीताम्बर – पीला है जो अम्बर (विशेषण -> पिला और विशेष्य -> अम्बर)
पीताम्बर – पीला है जो अम्बर (विशेषण -> पिला और विशेष्य -> अम्बर)
कृष्णसर्प – कृष्ण है जो सर्प (विशेषण -> कृष्ण और विशेष्य -> सर्प )
महाराज – महान है जो राजा
शुभागमन – शुभ है जो आगमन
सज्जन – सत् है जो जन
नीलगाय – नीली है जो गाय
महादेव – महान है जो देव
नीलकमल – नीला है जो कमल
उपमान – उपमेय का सम्बन्ध
उपमान – जिससे उपमा दी जाए
उपमेय – जिसे उपमा दी जाए
जैसे -
कनकलता – कनक के समान लता (उपमान->कनक और उपमेय ->लता)
कमलनयन – कमल के समान नयन
चरणकमल – कमल के समान चरण
प्राणप्रिय – प्राणों के समान प्रिय
भुजदंड – दंड के समान भुजा
मृगलोचन – मृग के समान लोचन
अन्य कुछ उदाहरण
वचनामृत – वचन रूपी अमृत
विद्याधन – विद्या रूपी धन
देहलता – देह रूपी लता
क्रोधाग्नि – क्रोध रूपी अग्नि
जैसे -
कनकलता – कनक के समान लता (उपमान->कनक और उपमेय ->लता)
कमलनयन – कमल के समान नयन
चरणकमल – कमल के समान चरण
प्राणप्रिय – प्राणों के समान प्रिय
भुजदंड – दंड के समान भुजा
मृगलोचन – मृग के समान लोचन
अन्य कुछ उदाहरण
वचनामृत – वचन रूपी अमृत
विद्याधन – विद्या रूपी धन
देहलता – देह रूपी लता
क्रोधाग्नि – क्रोध रूपी अग्नि
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