वर्ण, व्यंजन,अनुस्वार,अनुनासिक,'र' के विभिन्न रूप,अलंकर, छंद, समास, संधि, वाक्य शुद्धि, वाच्य, विलोम शब्द, रस,तत्सम और तद्भव शब्द,शब्द-भेद,शब्द, पद और पदबंध
उत्तरमध्यकाल – रीतिकाल – संवत् – 1700 – 1900 ( आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार )
साहित्य के इस काल में ‘रीति’ , ‘कवित्त रीति’ और ‘सुकवि रीति’ शब्दों का प्रचलन हो गया था | रामचन्द्र शुक्ल ने शायद इन्हीं प्रयोगों को ध्यान में रखते हुए इस काल को ‘रीतिकाल’ कहा |
रीतिकालीन काव्य को तीन धाराओं में बाँटा जा सकता है –
1.रीतिबद्ध धारा - रीतिबद्ध कवि वे हैं , जिन्होंने रीतिग्रंथों की रचना न करके काव्य -सिद्धांतो या लक्षणों के अनुसार काव्य – रचना की है | अलंकार ,रस ,नायिकाभेद ,ध्वनि आदि उनके ध्यान में तो रहे हैं परन्तु उनका प्रत्यक्षत: निरूपण इन कवियों ने नहीं किया है ,वरन् उत्कृष्ट काव्य का सृजन किया है | ऐसी दशा में वे कवि हैं आचार्य नहीं |
2.रीतिसिद्ध धारा– रीतिसिद्ध कवि वे हैं ,जो लक्षण – उदहारण की पद्धति तो नहीं अपनाते , किन्तु काव्य रचना के समय लक्षणों का ध्यान अवश्य रखते हैं | बिहारी ऐसे ही कवि हैं |
3.रीतिमुक्त धारा – रीतिमुक्त कवि वे हैं ,जो लक्षण – उदहारण की न तो पद्धति अपनाते हैं ,न ही लक्षणों का ध्यान रखते हैं | ये प्रेम के विशेषत: विरह के उन्मत्त गायक कवि हैं | घनानंद , आलम , बोधा , ठाकुर आदि इसी धारा के कवि हैं |
प्रमुख रीतिकालीन कवि व उनकी रचनाएँ
1. केशवदास -
रचनाएँ -
१ कविप्रिया
२ रसिकप्रिया
३ रामचन्द्रिका
४ वीरसिहं चरित
५ विज्ञान गीता
६ रतन बावनी
७ जहाँगीर – जस चंद्रिका
(इनमें से कविप्रिया और रसिकप्रिया काव्यशास्त्रीय पुस्तकें हैं | ऐसा माना जाता है कि ‘कविप्रिया’ की रचना महाराजा इंद्रसिहं की पतिव्रता गणिका रायप्रवीण को शिक्षा देने के लिए हुई थी | )
2. सेनापति -
रचनाएँ -
१ कवित्त रत्नाकर
२ काव्य कल्पद्रुम
3. बिहारी -
रचना -
१ सतसई (बिहारी सतसई के नाम से ही लोकप्रिय है )
( बिहारी जयपुर के राजा जयसिहं के दरबारी कवि थे | वे मूलत: श्रृंगार के कवि हैं ; यद्यपि उन्होंने भक्ति और नीति के भी मार्मिक दोहे रचे हैं | )
4. देव -
रचनाएँ -
१ भावविलास
२ भवानीविलास
३ रसविलास
४ सुखसागर तरंग
५ अष्टयाम
६ प्रेम चन्द्रिका
७ काव्यरसायन
5. भूषण -
रचनाएँ -
१ शिवराज भूषण ( अलंकार ग्रंथ )
२ शिवाबावनी
३ छत्रसाल – दसक
( चित्रकूट के सोलंकी राजा रूद्र ने इन्हें ‘कवि भूषण’ कहा ,बाद में ये इसी नाम से प्रसिद्ध हो गए | भूषण के काव्य में वीरता का स्वर है | )
6. मतिराम - (रीतिकाल के प्रसिद्ध आचार्य कवि है )
रचनाएँ -
१ छन्दसार
२ रसराज
३ साहित्यसार
४ लक्षण श्रृंगार
५ ललित ललाम
7.पद्माकर -
रचनाएँ -
१ हिम्मत बहादुर बिरुदावली
२ जगद्विनोद ( लक्षण ग्रंथ )
३ पद्माभरण
४ प्रबोध पचासा
५ राम रसायन
६ गंगा लहरी
8. गंग -
(अकबर के दरबारी कवि थे | इन्हें किसी सामंत ने हाथी से कुचल कर मरवा डाला था | इनका कोई भी ग्रंथ उपलब्ध नहीं है , परन्तु जो कविताएँ मिलती हैं ,वे प्रधानत: श्रृंगार की ही हैं | )
9. घनानंद -
रचनाएँ -
१ सुजान सागर
२ सुजान संबोधन
३ विरहलीला
४ कोकसार
५ रसकेलि
६ कृपाकांड
( घनानन्द मूलत: वियोग श्रृंगार के कवि हैं | वे प्रेम के गंभीर कवि हैं | वियोग में सच्चा प्रेमी जो वेदना सहता है ,उसके चित्त में जो विभिन्न तरंगें उठती हैं , उनका चित्रण घनानंद ने किया है | )
10. आलम -
रचना -
१ आलम केलि
( आलम ब्राह्मण थे , पर शेख नामक रंगरेजिन के प्रेम में पड़कर उससे विवाह कर लिया | शेख रंगरेजिन स्वयं भी सुकवयित्री थीं और आलम का उससे प्रेम कविता के कारण ही हुआ | )
11.बोधा -
रचनाएँ -
१ बिरहबारीश
२ इश्कनामा
( बोधा रसोंमत्त कवि थे | ‘प्रेम की पीर’ की व्यंजना इनके काव्य में भी मिलती है | )
12.गुरु गोविन्द सिहं –
रचनाएँ -
१ दशम ग्रंथ
२ चंडीचरित्र
३ चौबीस अवतार
( गुरु गोविन्द सिहं बहु – आयामी व्यक्तित्व के धनी थे , वे योद्धा , संत , राजनीतिज्ञ , कवि , प्रशासक सब कुछ थे | )