Monday 26 March 2018

कारक | १ कर्ता ने | २ कर्म को | ३ करण से | ४ संप्रदान को, के लिए | ५ अपादान से | ६ संबंध का,के, की ,रा, रे, री | ७ अधिकरण में, पर | ८ संबोधन हे ,अरे ,ओ


संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ संबंध निर्धारित करनेवाले तत्त्व को कारक तथा संबंध स्थापित करने वाले शब्द या शब्दांश को कारक – चिह्न या परसर्ग कहते हैं ; जैसे –


हिंदी में कारक व उनके चिह्न आठ माने गए हैं –

१ कर्ता ने
२ कर्म को
३ करण से
४ संप्रदान को, के लिए
५ अपादान से
६ संबंध का,के , की ,रा, रे, री
७ अधिकरण में , पर
८ संबोधन हे ,अरे ,ओ

1. कर्ता कारक – वाक्य में जिस शब्द द्वारा काम करने वाले का बोध होता है , उसे कर्ता कारक कहते हैं ; जैसे –

मोहन ने खाना खाया |

इस वाक्य में खाने का काम ‘मोहन’ करता है अत: मोहन कर्ता है | वाक्य में कर्ता का प्रयोग दो रूपों में होता है – पहला वह , जिसमें ‘ने’ विभक्ति नहीं लगती अर्थात क्रिया के लिंग, वचन, और पुरुष कर्ता के अनुसार होते हैं ; जैसे – 

मोहन खाता है |

इसे प्रधान कर्ता कारक भी कहा जाता है | दूसरा वह , जिसमें ‘ने’ विभक्ति लगती है अर्थात क्रिया के लिंग , वचन ,और पुरुष कर्म के अनुसार होते हैं ; जैसे –
मोहन ने खाना खाया है | (इसे अप्रधान कर्ता कारक कहा जाता है | )

कर्ता कारक के चिह्न ‘ने’ के प्रयोग संबंधी नियम -

1. ‘ने’ का प्रयोग कर्ता के साथ तब होता है जब क्रिया सकर्मक तथा सामान्यभूत, आसन्नभूत, पूर्णभूत, और संदिग्धभूत कालों में कर्मवाच्य या भाववाच्य हो ; जैसे – 


मोहन ने पुस्तक पढ़ी | ( सामान्यभूत )
राम ने खाना खाया है | ( आसन्नभूत )
गीता ने नृत्य किया था | (पूर्ण भूत )
गीता ने नृत्य किया होगा | ( संदिग्ध भूत )
गीता ने अभ्यास किया होता तो वह नृत्य कर पाती | (हेतुहेतुमद भूत )


इस प्रकार अपूर्ण भूत के अतिरिक्त शेष सभी प्रकारों में ‘ने’ का प्रयोग होता है | 

2. सामान्यत: अकर्मक क्रिया के साथ ‘ने’ का प्रयोग नहीं होता है | जैसे –
श्याम हँसता है |
गीता गई |

लेकिन नहाना, छींकना, थूकना आदि में ‘ने’ का प्रयोग होता है ; जैसे –
उसने छींका |
आपने नहाया |

3. सकर्मक क्रियाओं के साथ भी कर्ता के साथ वर्तमान और भविष्य काल में ‘ने’ का प्रयोग नहीं होता है ; जैसे – 
नमिता रोटी खाएगी |
मैं दूध पीता हूँ |

4. जिन वाक्यों में बोलना , भूलना , लाना , ले जाना ,चुकना आदि सहायक क्रियाएँ आती हैं उनमें ‘ने’ का प्रयोग नहीं होता है ; जैसे – 
मैं लिखना भूल गया | 
वह पुस्तक पढ़ चुका |

5. प्रेरणार्थक क्रियाओं के साथ , अपूर्णभूत को छोड़ शेष सभी भूतकालो में ‘ने’ का प्रयोग होता है ; जैसे –
मैंने उसे पढ़ाया | उसने एक रुपया दिलवाया |

2. कर्म कारक – वाक्य में क्रिया का फल जिस शब्द पर पड़ता है ,उसे कर्म कहते हैं | इसकी विभक्ति ‘को’ है ; जैसे –

राम ने रावण को मारा |

यहाँ कर्ता राम है और उसके मारने का फल ‘रावण’ पर पड़ रहा है | अत: रावण कर्म है और उसके साथ ‘को’ का प्रयोग हुआ है | कर्म कारक का प्रयोग निम्न स्थितियों में होता है | 

कर्म कारक के प्रयोग संबंधी नियम -

1. कर्म कारक में ‘को’ का प्रयोग चेतन या सजीव कर्म के साथ होता है ; जैसे –


नितिन ने अजय को पत्र लिखा |
मोहन ने श्याम को पुस्तक दी |

जबकि अचेतन या निर्जीव कर्म के साथ ‘को’ का प्रयोग नहीं होता ; जैसे –
गोपाल ने पत्र लिखा |
फूल मत तोड़ो |


2. दिन, समय और तिथि प्रकट करने के लिए ‘को’ का प्रयोग होता है ; जैसे –
15 अगस्त को राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाएगा |
सोमवार को अक्षरधाम मंदिर बंद रहता है |

3. जब विशेषण का प्रयोग संज्ञा के रूप में कर्म कारक की भांति होता है , तब उसके साथ कर्म कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – 
भक्तों को मंदिर में जाने दो |
दुष्टों को कोई नहीं चाहता |

4. बुलाना, सुलाना, कोसना, पुकारना, जगाना, भगाना इत्यादि क्रियाओं के कर्मो के साथ ‘को’ विभक्ति का प्रयोग होता है ; जैसे –
माँ ने बच्चे को सुलाया |
लोगों ने शोर करके चोरों को भगाया |

3. करण कारक – करण का अर्थ है – साधन | संज्ञा का वह रूप जिससे किसी क्रिया के साधन का बोध हो , उसे करण कारक कहते हैं ; जैसे –
राम ने रावण को बाण से मारा |

इस वाक्य में बाण द्वारा रावण को मारने का उल्लेख है अतएव बाण करण कारक हुआ | करण कारक के चिह्न हैं – ‘से’ , ‘के द्वारा’ , ‘के कारण’ , ‘के साथ’ , ‘के बिना’ आदि | 

करण कारक के प्रयोग संबंधी नियम - 


1. साधन के अर्थ में करण कारक का प्रयोग होता है ; जैसे –
लकड़हारा कुल्हाड़ी से लकड़ियाँ काटता है |
मुझे अपनी कमाई से खाना मिलता है |

2. साधक अर्थ में भी करण कारक का प्रयोग होता है ; जैसे –
मुझसे यह काम न सधेगा |
तीर से बाघ मार दिया गया |

3. भाववाचक संज्ञा से क्रियाविशेषण बनाते समय करण कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – 
नम्रता से बात करो |

4. उत्पत्ति सूचक अर्थ में भी करण कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – 
कोयला खान से निकलता है |
गन्ने के रस से चीनी बनाई जाती है |

5. प्यार, मैत्री, बैर होने पर करण कारक का प्रयोग होता है ; जैसे –
राम की रावण से शत्रुता थी |

4. संप्रदान कारक – जिसके लिए कुछ दिया जाए या जिसको कुछ दिया जाए इसका बोध कराने वाले शब्द को सम्प्रदान कारक कहते हैं ; जैसे –

माँ बच्चे के लिए दूध लाती है |
यज्ञ के लिए लकड़ियाँ लाओ |

कर्म और सम्प्रदान का एक ही विभक्ति चिह्न ‘को’ है , परन्तु दोनों के अर्थों में अंतर है | सम्प्रदान का ‘को’, ‘के लिए’ अव्यय के स्थान पर या उसके अर्थ में प्रयुक्त होता है, जबकि कर्म के ‘को’ का ‘के लिए’ से कोई सम्बन्ध नहीं है ; जैसे – 
सोहन श्याम को मारता है | ( कर्म कारक )
श्याम भिक्षुक को भीक्षा देता है | ( सम्प्रदान कारक )
माता ने बच्चे को बुलाया | ( कर्म कारक )
अध्यापिका ने छात्रों को मिठाइयाँ दीं | ( संप्रदान कारक )

सम्प्रदान कारक के प्रयोग संबंधी नियम -


1. किसी वस्तु को दिए जाने के अर्थ में को, के लिए अथवा के वास्ते का प्रयोग होता है ; जैसे -
विद्यार्थियों को पुस्तकें दो |अतिथि के लिए चाय लाओ |

2. अवधि का निर्देश करने के लिए भी सम्प्रदान कारक का प्रयोग किया जाता है ; जैसे – 
मैं दो माह के लिए सिंगापुर जाऊँगी |
मुझे तीन दिन के लिए तुम्हारी कार चाहिए |

3. ‘चाहिए’ शब्द के साथ भी सम्प्रदान कारक का प्रयोग होता है ; जैसे –
जलाने के लिए लकड़ियाँ चाहिए |
बच्चे के लिए दूध चाहिए |


5. अपादान कारक – संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु के अलग होने का भाव प्रकट होता है , उसे अपादान कारक कहते हैं ; जैसे –
पेड़ से पत्ता गिरता है |
हिमालय से गंगा निकलती है |

अपादान कारक के प्रयोग संबंधी नियम -

1. अलग होने के अतिरिक्त डरने के अर्थ में भी अपादान कारक का प्रयोग होता है ; जैसे –

कृष्णव शेर से डरता है |

2. रक्षा करने के अर्थ में अपादान कारक का प्रयोग होता है ; जैसे –

आपने मुझे हानि से बचाया |

3. तुलना करने का भाव भी अपादान कारक से प्रकट होता है ; जैसे –

कृष्णव चिन्मय से छोटा है |

करण कारक और अपादान कारक में अंतर -


यद्यपि दोनों कारकों के विभक्ति चिह्न ‘से’ हैं परन्तु इन दोनों में पर्याप्त अंतर है | करण कारक का प्रयोग साधन अर्थ में किया जाता है ; जैसे – 
मोहन कलम से लिखता है | 
इसके अतिरिक्त अपादान कारक का प्रयोग पृथक होने अर्थात अलग होने के अर्थ में किया जाता है ; जैसे - 
मेज से पुस्तक गिरती है |

6. सम्बन्ध कारक – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी अन्य शब्द के साथ सम्बन्ध या लगाव प्रतीत हो उसे संबंध कारक कहते हैं | सम्बन्ध कारक में विभक्तियाँ सदैव लगाईं जाती हैं | जैसे - 

गीता सोहन की बहन है | 

संबंध कारक के प्रयोग संबंधी नियम -

1. एक संज्ञा या सर्वनाम का दूसरी संज्ञा या सर्वनाम से सम्बन्ध प्रदर्शित करने के लिए सम्बन्ध कारक का प्रयोग होता है ; जैसे - 
सुनीता रमा की बहन है |
राम सुग्रीव के मित्र थे |

2. स्वामित्व या अधिकार प्रकट करने के लिए सम्बन्ध कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – 

आप किसकी आज्ञा से आए हैं |

3. परिमाण प्रकट करने के लिए , मोलभाव प्रकट करने के लिए ,निर्माण का साधन प्रदर्शित करने के लिए सम्बन्ध कारक का प्रयोग किया जाता है ; जैसे – 
पाँच मीटर की साड़ी (परिमाण )
बीस रुपए के आलू (मोलभाव )
ईंटो का मकान (निर्माण का साधन )

4. सर्वनाम की स्थिति में संबंध कारक का रूप रा, रे, री हो जाता है ;
जैसे – 

मेरी पुस्तक तुम्हारा पत्र


5. संबंधकारक की विभक्तियों द्वारा कुछ मुहावरेदार प्रयोग भी होते हैं ; जैसे – 

कान का कच्चा , आँख का अंधा , बात का धनी इत्यादि

7. अधिकरण कारक – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया का आधार सूचित होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं , इसके परसर्ग (कारक चिह्न ) में , पर है ; जैसे –

चिड़िया पेड़ पर बैठी है |

अधिकरण कारक के प्रयोग संबंधी नियम - 

1 स्थान , समय , भीतर या सीमा का बोध कराने के लिए अधिकरण कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – 

पुस्तक मेज पर रखी है |
ठीक समय पर आ जाना | 



2 तुलना, मूल्य और अंतर का बोध कराने के लिए अधिकरण कारक का प्रयोग किया जाता है ; जैसे – 

कमल सभी फूलों में सुन्दरतम है |
वह घर चालीस लाख में बिक रहा है | 



3 निर्धारण और निमित्त प्रकट करने के लिए अधिकरण कारक का प्रयोग होता है ; जैसे – 

छोटी - सी बात पर गुस्सा मत करो |

8. संबोधन कारक – संज्ञा के जिस रूप से किसी को पुकारने , चेतावनी देने या संबोधित करने का बोध होता है, उसे संबोधन कारक कहते हैं ; जैसे –

हे राम ! रक्षा करो |
अरे मूर्ख ! संभल जा |

संबोधन कारक की कोई विभक्ति नहीं होती |


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