Sunday 17 June 2018

छन्द - वर्णों की गणना सीखें [ मात्रिक छन्द ] भाग -2


मात्रिक छन्द – मात्रिक छंद मात्राओं की संख्या के आधार पर होते हैं | प्रमुख मात्रिक छंद इस प्रकार हैं –


मात्रिक सम छंद -


1. चौपाई – यह मात्रिक सम छंद है | इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं और प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु (ऽऽ) होते हैं | जैसे - 
धीरज धर्म मित्र अरु नारी |
आपद काल परखिए चारी ||

2. रोला - यह मात्रिक सम छंद है | इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं | इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 मात्राओं पर यति ही अधिक प्रचलित है | प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु (ऽऽ) या दो लघु ( | | ) होते हैं | जैसे -
जो जगहित पर प्राण निछावर है कर पाता |
जिसका तन है किसी लोकहित में लग जाता ||

3. गीतिका - मात्रिक सम छंद है | इसके प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ होती हैं | इसके प्रत्येक चरण में 14 और 12 मात्राओं पर यति होती है | प्रत्येक चरण के अंत में क्रमश: एक लघु व एक गुरु आना आवश्यक है | जैसे -
हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए,शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए |लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें ,ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें ||

4. हरिगीतिका – मात्रिक सम छंद है | इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं | 16 और 12 मात्राओं पर यति तथा अंत में लघु गुरु का प्रयोग ही अधिक प्रचलित है | जैसे - 
श्री रामचन्द्रकृपालुभजुमन , हरण भव भय दारुणं |
नवकंजलोचनकंजमुखकर , कंज पद कंजारुणं ||

अर्धसम मात्रिक छंद -

1. दोहा – इस छंद में 24 मात्राएँ होती हैं जिसके विषम ( पहले व तीसरे ) चरणों में 13 – 13 मात्राएँ तथा सम ( दूसरे व चौथे ) चरणों में 11 – 11 मात्राएँ होती हैं | इसके सम चरणों के अंत में एक लघु वर्ण आना आवश्यक है | तुक भी प्राय: सम चरणों में मिलती है | जैसे - 
रहिमन धागा प्रेम का , मत तोड़ो छिटकाय |
टूटे से फिर ना जुड़े , जुड़े गाँठ पड़ जाय ||

2. सोरठा – यह दोहा छंद के विपरीत लक्षणों वाला छंद माना जाता है क्योंकि इसके विषम ( पहले व तीसरे ) चरणों में 11 – 11 मात्राएँ तथा सम ( दूसरे व चौथे ) चरणों में 13 – 13 मात्राएँ होती हैं | इसके विषम चरणों के अंत में एक लघु वर्ण आना आवश्यक है | जैसे - 
जानि गौरि अनुकूल , सिय हिय हरषु न जाहि कहि |
मंजुल मंगल मूल , वाम अंग फरकन लगे ||


3. उल्लाला – यह अर्धसम मात्रिक छंद है इसके विषम चरणों में 15 – 15 व सम चरणों में 13 – 13 मात्राएँ होती हैं | इसमें तुक सम चरणों में मिलती है | जैसे - 
हे शरणदायिनी देवि तू , करती सबका त्राण है |
हे मातृभूमि संतान हम , तू जननी तू प्राण है ||

विषम मात्रिक छंद

1. छप्पय – यह छ: चरण वाला विषम मात्रिक छंद है इसके प्रथम चार चरण रोला के तथा अंतिम दो चरण उल्लाला के होते हैं | जैसे – 

नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुंदर है |
सूर्य-चन्द्र युग मुकुट मेखला रत्नाकर है |  
नदियाँ प्रेम – प्रवाह फूल तारा मंडल है | 
बन्दी जन खगवृन्द शेष फन सिंहासन है |
रोला(मात्रिक सम छंद)
प्रत्येक चरण में -24




करते अभिषेक पयोद हैं बलिहारी इस वेष की |
हे मातृभूमि तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की || 
उल्लाला(अर्ध सम)

विषम -15 -15
सम – 13 – 13



2. कुंडलिया – इसके प्रथम दो चरण दोहा और बाद के चार चरण रोला के होते हैं | 

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