मात्रिक छन्द – मात्रिक छंद मात्राओं की संख्या के आधार पर होते हैं | प्रमुख मात्रिक छंद इस प्रकार हैं –
मात्रिक सम छंद -
1. चौपाई – यह मात्रिक सम छंद है | इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं और प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु (ऽऽ) होते हैं | जैसे -
धीरज धर्म मित्र अरु नारी |
आपद काल परखिए चारी ||
2. रोला - यह मात्रिक सम छंद है | इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं | इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 मात्राओं पर यति ही अधिक प्रचलित है | प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु (ऽऽ) या दो लघु ( | | ) होते हैं | जैसे -
जो जगहित पर प्राण निछावर है कर पाता |
जिसका तन है किसी लोकहित में लग जाता ||
3. गीतिका - मात्रिक सम छंद है | इसके प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ होती हैं | इसके प्रत्येक चरण में 14 और 12 मात्राओं पर यति होती है | प्रत्येक चरण के अंत में क्रमश: एक लघु व एक गुरु आना आवश्यक है | जैसे -
हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए,शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए |लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें ,ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें ||
श्री रामचन्द्रकृपालुभजुमन , हरण भव भय दारुणं |
नवकंजलोचनकंजमुखकर , कंज पद कंजारुणं ||
अर्धसम मात्रिक छंद -
1. दोहा – इस छंद में 24 मात्राएँ होती हैं जिसके विषम ( पहले व तीसरे ) चरणों में 13 – 13 मात्राएँ तथा सम ( दूसरे व चौथे ) चरणों में 11 – 11 मात्राएँ होती हैं | इसके सम चरणों के अंत में एक लघु वर्ण आना आवश्यक है | तुक भी प्राय: सम चरणों में मिलती है | जैसे -
रहिमन धागा प्रेम का , मत तोड़ो छिटकाय |
टूटे से फिर ना जुड़े , जुड़े गाँठ पड़ जाय ||
2. सोरठा – यह दोहा छंद के विपरीत लक्षणों वाला छंद माना जाता है क्योंकि इसके विषम ( पहले व तीसरे ) चरणों में 11 – 11 मात्राएँ तथा सम ( दूसरे व चौथे ) चरणों में 13 – 13 मात्राएँ होती हैं | इसके विषम चरणों के अंत में एक लघु वर्ण आना आवश्यक है | जैसे -
जानि गौरि अनुकूल , सिय हिय हरषु न जाहि कहि |
मंजुल मंगल मूल , वाम अंग फरकन लगे ||
3. उल्लाला – यह अर्धसम मात्रिक छंद है इसके विषम चरणों में 15 – 15 व सम चरणों में 13 – 13 मात्राएँ होती हैं | इसमें तुक सम चरणों में मिलती है | जैसे -
हे शरणदायिनी देवि तू , करती सबका त्राण है |
हे मातृभूमि संतान हम , तू जननी तू प्राण है ||
विषम मात्रिक छंद
1. छप्पय – यह छ: चरण वाला विषम मात्रिक छंद है इसके प्रथम चार चरण रोला के तथा अंतिम दो चरण उल्लाला के होते हैं | जैसे –नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुंदर है | सूर्य-चन्द्र युग मुकुट मेखला रत्नाकर है | नदियाँ प्रेम – प्रवाह फूल तारा मंडल है | बन्दी जन खगवृन्द शेष फन सिंहासन है | |
रोला(मात्रिक सम छंद) प्रत्येक चरण में -24 |
करते अभिषेक पयोद हैं बलिहारी इस वेष की | हे मातृभूमि तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की || | उल्लाला(अर्ध सम) विषम -15 -15 सम – 13 – 13 |
2. कुंडलिया – इसके प्रथम दो चरण दोहा और बाद के चार चरण रोला के होते हैं |
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