वर्णिक छंद – जिन छन्दों की रचना वर्णों की गणना के आधार पर की जाती है उन्हें वर्णिक छंद कहते हैं | इसमें गणों को देखा जाता है | ‘गण’ का अर्थ होता है – ‘समूह’ | वर्णिक छंदों में तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं और मात्रिक छंदों में चार मात्राओं के समूह को गण कहते हैं | गण आठ प्रकार के होते हैं |
इसके लिए एक सूत्र दिया गया है – ‘य मा ता रा ज भा न स ल गा’
प्रमुख वर्णिक छंद इस प्रकार हैं –
1. इंद्रवज्रा छंद – इसके प्रत्येक चरण में ग्यारह वर्ण हैं , पाँचवें या छठे वर्ण पर यति होती है | इसमें दो तगण , एक जगण तथा अंत में दो गुरु होते हैं | जैसे -
ऽ ऽ | ऽ ऽ | | ऽ | ऽ ऽ
जो मैं नया ग्रन्थ विलोकता हूँ ,
ऽ ऽ | ऽ ऽ | | ऽ | ऽ ऽ
भाता मुझे सो नव मित्र सा है |
देखूँ उसे मैं नित सार वाला ,
मानो मिला मित्र मुझे पुराना |
2. उपेन्द्रवज्रा छंद – इसके भी प्रत्येक चरण में ग्यारह वर्ण हैं , पाँचवें या छठे वर्ण पर यति होती है | इसमें जगण , तगण , जगण तथा अंत में दो गुरु होते हैं | जैसे -
| ऽ | ऽ ऽ | | ऽ | ऽ ऽ
बड़ा कि छोटा कुछ काम कीजै |
| ऽ | ऽ ऽ || ऽ | ऽ ऽ
परन्तु पूर्वापर सोच लीजै ||
3. वसन्ततिलका छंद – इस छंद के प्रत्येक चरण में चौदह वर्ण होते हैं | वर्णों के क्रम में तगण , भगण , दो जगण तथा दो गुरु रहते हैं | जैसे -
ऽ ऽ | ऽ | | | ऽ | | ऽ | ऽ ऽ
बातें बड़ी सरस थे कहते बिहारी ,
ऽ ऽ | | | | | ऽ | | ऽ | ऽ ऽ
छोटे बड़े सकल का हित चाहते थे |
4. मालिनी छन्द – इसके प्रत्येक चरण में 15 वर्ण होते हैं, जो क्रमश: नगण ,नगण , मगण ,यगण , यगण के रूप में लिखे जाते हैं | यति आठ व सात वर्णों पर होती है | जैसे -
| | | | | | ऽ ऽ ऽ | ऽ ऽ | ऽ ऽ
प्रिययति वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ है ?
| | | | | | ऽ ऽ ऽ | ऽ ऽ | ऽ ऽ
दुख जलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है ?
लख मुख जिसका मैं आज लौं जी सकी हूँ ,
वह ह्रदय हमारा नैन तारा कहाँ है ?
5. मन्दाक्रान्ता छंद – इस छन्द के प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं , जो क्रमश: मगण , भगण , नगण , तगण व गुरु , गुरु के रूप में लिखे जाते हैं | जैसे –
ऽ ऽ ऽ ऽ | | | | | ऽ ऽ | ऽ ऽ | ऽ ऽ
फूली डालें सुकुसुममयी तीय की देख आँखें |
आ जाती है मुरलिधर की मोहिनी मूर्ति आगे |
6. वंशस्थ छन्द - इस छन्द के प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं , जो क्रमश: जगण , तगण , जगण , रगण के रूप में लिखे जाते हैं | इसमें यति प्रत्येक चरण के अंत में होती है | जैसे -
| ऽ | ऽ ऽ | | ऽ | ऽ | ऽ
दिनान्त था वे दिननाथ डूबते ,
सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे |
दिगन्त में गो – रज थी समुत्थिता ,
विषाण नाना बजते सवेणु थे |
7. द्रुतविलम्बित छन्द – इस छंद के प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं , जो क्रमश: नगण , भगण , भगण ,रगण के रूप में लिखे जाते हैं | इसमें यति प्रत्येक चरण के अंत में होती है | जैसे -
| | | ऽ | | ऽ | | ऽ | ऽ
दिवस का अवसान समीप था ,
| | | ऽ | | ऽ | | ऽ | ऽ
गगन था कुछ लोहित हो चला |
तरु शिखा पर थी अब राजती ,
कमलिनी कुल बल्लभ की प्रभा |
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जी बहुत ही अच्छी पाठ्यसामग्री
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