Saturday 23 June 2018

Chhayavadi Kavi Aur Unki Rachnayen - [छायावादी युग के स्तंभ कवि]

छायावादी युग के स्तंभ कवि 

कालावधि – डॉ नगेन्द्र के अनुसार – 1918 ई. से 1938 ई. तक | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भी छायावाद का प्रारम्भ 1918 ई. से ही माना है | 

छायावाद की प्रमुख परिभाषाएँ -

1. महादेवी वर्मा – “छायावाद तत्त्वत: प्रकृति के बीच जीवन का उद्गीथ है , उसका मूल सर्वात्मवाद है |” 

2. जयशंकर प्रसाद – “जब वेदना के आधार पर स्वानुभूति अभिव्यक्त होने लगी, तब हिंदी में उसे छायावाद के नाम से अभिहित किया गया |” 

3. डॉ नगेन्द्र – “छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है | छायावाद एक विशेष प्रकार की भाव पद्धति है , जीवन के प्रति एक विशेष भावात्मक दृष्टिकोण है |” 

4. आचार्य रामचंद्र शुक्ल – “छायावाद का प्रयोग दो अर्थों में समझना चाहिए – एक तो ‘रहस्यवाद’ के अर्थ में और दूसरा काव्य शैली या पद्धति विशेष के व्यापक अर्थ में |” 

उक्त परिभाषाओं के आलोक में छायावादी काव्य के निम्न लक्षण निरुपित किए जा सकते हैं – 
1 छायावादी काव्य में रहस्यवादी प्रवृत्ति रहती है |
2 छायावादी कविता प्रेम , सौन्दर्य व प्रकृति का काव्य है |
3 छायावाद में स्थूलता के स्थान सूक्ष्मता रहती है |
4 छायावाद में स्वानुभूति की प्रधानता है |

छायावाद के विविध अर्थ – विभिन्न विद्वानों की दृष्टि में ‘छायावाद’ के अनेक अर्थ ग्रहण किए गए हैं – 
महावीर प्रसाद द्विवेदी – रहस्यवाद
डॉ नगेन्द्र – स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह
हजारी प्रसाद द्विवेदी - व्यंग्यार्थ प्रधान शैली
जयशंकर प्रसाद - कान्ति
सुमित्रानंदन पंत - सौन्दर्य की छाया
नन्द दुलारे वाजपेयी - वक्त सौन्दर्य में आध्यात्मिक छाया का भान
गंगा प्रसाद पाण्डेय - वस्तुवाद व रहस्यवाद के बीच की कड़ी

छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियाँ -
1 सौन्दर्य चित्रण
2 श्रृंगार रस की प्रधानता
3 नारी भावना
4 राष्ट्रीयता एवं स्वदेश प्रेम
5 प्रकृति चित्रण
6 स्वानुभूति की प्रधानता
7 रहस्यवादी भावना
8 भाषा में लाक्षणिकता
9 नूतन प्रतीक व बिम्ब विधान
10 नवीन अलंकारों का प्रयोग

छायावाद के स्तंभ कवि व उनकी रचनाएँ


1 जयशंकर प्रसाद
जन्मकाल व जन्मस्थान - 1889 ई. , काशी
मृत्युकाल - 1937 ई. ( 48 वर्ष की अल्पायु में )

प्रमुख रचनाएँ -

1 प्रेमपथिक – 1905 / 1913 ई. ( यह रचना पहले ब्रज भाषा में रची गई थी बाद में इसे खड़ी बोली 

में रूपांतरित किया गया था | )
2 चित्राधार ( 1906 ई. – 1909 ई.) 
3 करुणालय ( 1913 ई. )
4 कानन – कुसुम (1913 ई. ) 
5 महाराणा का महत्त्व ( 1914 ई. )
6 झरना ( 1918 ई. ) 
7 आँसू ( 1925 ई. )
8 लहर ( 1933 ई. ) 
9 कामायनी ( 1935 ई. )

अन्य रचनाएँ (कविताएँ)

1 उर्वशी -1909 ई.
2 वनमिलन - 1909 ई.
3 प्रेमराज्य - 1909 ई.
4 शोकोच्छवास – 1910 ई.
5 अयोध्या का उद्धार – 1910 ई.
6 बभ्रुवाहन – 1911 ई.
7 कल्पना सुख - 1909 ई.
8 विदाई - 1909 ई.
9 नीरव प्रेम - 1909 ई.
10 विसर्जन - 1909 ई.

विशेष तथ्य –
1 कामायनी छायावादी महाकाव्य है तथा अपने समय की श्रेष्ठतम कृति है |

2 कामायनी के 15 सर्गों में तीन प्रमुख पात्र मनु, श्रद्धा और इड़ा क्रमश: मन, ह्रदय और बुद्धि के प्रतीक हैं |
3 प्रसाद छायावाद के प्रवर्तक हैं, उनकी रचनाओं में रहस्यवादी प्रवृत्ति है |
4 इन्हें छायावाद का ‘ब्रह्मा’ कहा जाता है |
5 इनके द्वारा रचित ‘करुणालय’ हिंदी का प्रथम गीतिनाट्य माना जाता है |
6 प्रसाद प्रारंभ में ‘कलाधर’ नाम से ब्रज भाषा में रचनाकार्य करते थे |


2 सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

जन्मकाल व जन्मस्थान - 1899 ई. , महिषादल राज्य (बंगाल )
मृत्युकाल – 1961 ई.
सर्वप्रथम कविता – जुही की कली – 1916 ई. में

प्रमुख रचनाएँ -


1 अनामिका (1923 ई.)
2 परिमल (1930 ई.)
3. सरोज स्मृति (1935 ई.)
4. राम की शक्ति पूजा (1936 ई.)
5 गीतिका (1936 ई.)
6. तुलसीदास (1938 ई.)
7. अणिमा (1943 ई.)
8. नये पत्ते (1946 ई.)
9. बेला (1946 ई.)
10. कुकुरमुत्ता (1948 ई.)
 9 अर्चना (1950 ई.)
10 आराधना (1953 ई.)
11 गीत गुंज (1954 ई.) 

विशेष तथ्य –

1 ‘तुलसीदास’ एक प्रबंधकाव्य है जिसमें तुलसी के माध्यम से भारतीय जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा की गई है |
2 ‘सरोज-स्मृति’कविता निराला जी ने अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु होने पर उसके शोक में लिखी थी |
3 ये छायावाद के रूद्र कहे जाते हैं | इन्हें ओज व औदात्य का कवि कहा जाता है |
4 इनको छायावाद , प्रगतिवाद व प्रयोगवाद तीनों आंदोलनों का पथ- प्रदर्शक भी कहा जाता है |

3. सुमित्रानंदन पंत 

जन्मकाल व जन्मस्थान - 1900 ई. , ग्राम – कोसानी जिला – अल्मोड़ा

मृत्युकाल – 1977 ई.
पंत की सर्वप्रथम कविता – गिरजे का घंटा ( 1916 ई. में प्रकाशित )
पंत की सर्वप्रथम छायावादी कविता – उच्छ्वास ( 1920 ई. )

प्रमुख रचनाएँ -

छायावादी रचनाएँ -
1 उच्छ्वास (1920 ई.)
2 ग्रंथि (1920 ई.)
3 वीणा (1927 ई.)
4 पल्लव (1928 ई.)
5 गुंजन (1932 ई.)

प्रगतिवादी रचनाएँ – 
1 युगान्त (1936 ई.)
2 युगवाणी (1939 ई.)
3 ग्राम्या (1940 ई.)

मानवतावादी रचनाएँ -
1 रजतशिखर (1951 ई.)
2 अतिमा (1955 ई.)
3 वाप्पी (1957 ई.)
4 चिदम्बरा (1959 ई.)
5 कला और बूढ़ा चाँद (1959 ई. )
6 लोकायतन (1964 ई.)
7 पौ फटने से पहले

अरविन्द दर्शन से प्रभावित रचनाएँ -
1 स्वर्णकिरण (1947 ई.)
2 स्वर्णधूलि (1947 ई.)
3 युगान्तर (1948 ई.)
4 युगपथ (1948 ई.)

विशेष तथ्य –
1 पंत प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाते हैं |

2 पंत कोमल कल्पना के लिए प्रसिद्द रहे हैं |
3 ‘चिदंबरा’ काव्यकृति के लिए इन्हें ज्ञानपीठ पुरूस्कार प्राप्त हुआ था |
4 ‘कला और बूढ़ा चाँद’ के लिए इन्हें 1960 ई. में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ था |
5 भारत सरकार ने पंत को ‘पद्म विभूषण’ से अलंकृत किया था |
6 इनके द्वारा रचित ‘पल्लव’ रचना की भूमिका को ‘छायावाद का घोषणापत्र’ कहा जाता है |
7 इन्हें छायावाद का ‘विष्णु’ कहा जाता है |

4. महादेवी वर्मा

जन्मकाल व जन्मस्थान - 1907 ई. , फर्रुखाबाद (उ. प्र.)
मृत्युकाल – 1987 ई.

प्रमुख रचनाएँ
काव्य संग्रह – 
1 नीहार (1930 ई. )
2 रश्मि (1932 ई. )
3 नीरजा (1935 ई.)
4 सांध्यगीत (1936 ई. )
5 दीपशिखा (1942 ई. )
6 सप्तपर्णा (1960 ई.)


गद्य रचनाएँ – 
1 स्मृति की रेखाएँ
2 पथ के साथी
3 श्रृंखला की कड़ियाँ
4 अतीत के चलचित्र

समेकित काव्य संग्रह – यामा – 1940 ई. ( नीहार ,रश्मि ,नीरजा तथा सांध्यगीत के गीतों का 

समेकित संकलन किया गया है | ) 
विशेष तथ्य –
1 ‘यामा’ के लिए 1982 ई. में इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया |

2 ‘नीरजा’ रचना के लिए सेकसरिया पुरस्कार मिला था |
3 महादेवी जी के काव्य में विरह की प्रधानता है जो लौकिक न होकर अलौकिक विरह है |
4 इनके काव्य में रहस्यवादी प्रकृति विद्यमान है |
5 इन्हें ‘वेदना की कवयित्री’ एवं ‘आधुनिक युग की मीरां’ कहा जाता है |

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