Sunday 17 June 2018

छन्द - (वर्णों की गणना सीखें) भाग -1



छन्द शब्द की रचना ‘छद् / चद्’ धातु में ‘असुन्’ प्रत्यय के जुड़ने से हुई है |

छन्द की परिभाषा – 

१ जिस रचना में अक्षरों की निश्चित मात्रा का ध्यान रखा जाता है , उसे छंद कहते हैं |

२ जिस रचना में मात्राओं एवं वर्णों की सीमा का ध्यान रखा जाता है , उसे छन्द कहते हैं |


सामान्यत: ऐसी रचना जिसमें यति , गति , चरण , दल , मात्रा , गण इत्यादि के नियमों का पालन किया जाता है , उसे छन्द कहते हैं | 

छन्द संबंधी महत्त्वपूर्ण तथ्य – 



1 छन्द शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख हमारे आदि ग्रन्थ ऋग्वेद के दशम (10 वें ) मंडल के 90 वें सूक्त (पुरुष सूक्त) के नवें मन्त्र में प्राप्त होता है | 



2 लौकिक साहित्य के अंतर्गत आचार्य पिंगल छन्द शास्त्र के प्रवर्तक आचार्य माने जाते हैं तथा इनके द्वारा रचित ‘छन्द: सूत्र’ रचना छन्दशास्त्र की सर्वप्रथम रचना मानी जाती है | 

3 छन्द शास्त्र की सर्वप्रथम आचार्य मूलत: ब्रह्माजी ही माने जाते हैं | 

छन्द के संघटक तत्व आठ हैं और वे इस प्रकार हैं – 


1. चरण – छन्द कुछ पंक्तियों का समूह होता है और प्रत्येक पंक्ति में समान वर्ण या मात्राएँ होती हैं | इन्हीं पंक्तियों को ‘चरण’ या ‘पाद’ कहते हैं | प्रथम व तृतीय चरण को ‘विषम’ तथा दूसरे और चौथे चरण को ‘सम’ कहते हैं | 

2. वर्ण – ध्वनि की मूल इकाई को ‘वर्ण’ कहते हैं | छंद शास्त्र में हृस्व , दीर्घ वर्ण समझे जाते हैं |


3. मात्रा – किसी वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसको मात्रा कहते हैं | छंद शास्त्र में मात्राओं का बहुत महत्त्व होता है हृस्व स्वरों की एक मात्रा व दीर्घ स्वरों की दो मात्राएँ होती हैं | जैसे – राम में ‘रा’ में दो मात्रा और ‘म’ में एक मात्रा है अर्थात् राम में तीन मात्राएँ हैं |


4. लघु – एक मात्रा वाला अक्षर छंद शास्त्र में में ‘लघु’ कहलाता है | इसके लिए ( | ) चिह्न का प्रयोग होता है | जैसे – कमल में तीन मात्राएँ हैं –

|      |      |      = 3 मात्राएँ
    क          

5. गुरु - दो मात्राओं वाला अक्षर ‘गुरु’ कहलाता है | दो मात्राओं को ( ऽ ) चिह्न से प्रकट किया जाता है | जैसे - गीता में चार मात्राएँ हैं –

     ऽ ऽ    =    4 मात्राएँ
    गी ता

6. यति – यति का अर्थ है – विराम | प्रत्येक चरण के अंत में विराम होता है जिसको यति कहते हैं |



7. गति – छंद का प्रभाव गति कहलाता है |



8. गण – ‘गण’ का अर्थ होता है – ‘समूह’ | वर्णिक छंदों में तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं और मात्रिक छंदों में चार मात्राओं के समूह को गण कहते हैं | गण आठ प्रकार के होते हैं |

इसके लिए एक सूत्र दिया गया है – ‘य मा ता रा ज भा न स ल गा’


 गण 
 लक्षण व स्वरूप चिह्न 
 उदाहरण 
1.
यगण 
आदि गुरु शेष लघु
  | ऽ ऽ
सजाना
2.
मगण 
तीनों गुरु 
 ऽ ऽ ऽ 
आज़ादी
3.
तगण
अंत लघु 
 ऽ ऽ |
साकार 
4.
रगण 
मध्य लघु 
|
नीरजा
5.
जगण 
मध्य गुरु 
| |
गणेश 
6. भगण  आदि गुरु  | |  मानस 
7. नगण  सब लघु  | | |  कमल 
8. सगण  अन्त गुरु  | |   रजनी






















छंद के प्रकार


1. सम छन्द - सम छन्द के चार चरण होते हैं और चारों की मात्राएँ या वर्ण समान ही होते हैं | जैसे – 

रघु कुल रीति सदा चली आई
( | | | | ऽ | ऽ | ऽ ऽ ऽ ) = 16 मात्राएँ
प्राण जाइ पर बचन न जाई
( ऽ | ऽ | | | | | | | ऽ ऽ ) = 16 मात्राएँ

2. अदर्धसम छन्द – छंद के पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरणों की मात्राओं या वर्णों में परस्पर समानता होती है | जैसे - 


माला फेरत जग मुआ , मिटा न मनका फेर |
( ऽ ऽ ऽ | | | | | ऽ ) ( | ऽ | | | ऽ ऽ | )
(13 मात्राएँ) (11 मात्राएँ)

कर का मनका डारि दे , मनका मनका फेर ||
( | | ऽ | | ऽ ऽ | ऽ ) ( | | ऽ | | ऽ ऽ | )
(13 मात्राएँ) (11 मात्राएँ)

3. विषम छन्द – इसमें चार से अधिक छ: चरण होते हैं और वे एक समान नहीं होते |


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