छन्द शब्द की रचना ‘छद् / चद्’ धातु में ‘असुन्’ प्रत्यय के जुड़ने से हुई है |
छन्द की परिभाषा –
१ जिस रचना में अक्षरों की निश्चित मात्रा का ध्यान रखा जाता है , उसे छंद कहते हैं |
२ जिस रचना में मात्राओं एवं वर्णों की सीमा का ध्यान रखा जाता है , उसे छन्द कहते हैं |
सामान्यत: ऐसी रचना जिसमें यति , गति , चरण , दल , मात्रा , गण इत्यादि के नियमों का पालन किया जाता है , उसे छन्द कहते हैं |
छन्द संबंधी महत्त्वपूर्ण तथ्य –
1 छन्द शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख हमारे आदि ग्रन्थ ऋग्वेद के दशम (10 वें ) मंडल के 90 वें सूक्त (पुरुष सूक्त) के नवें मन्त्र में प्राप्त होता है |
2 लौकिक साहित्य के अंतर्गत आचार्य पिंगल छन्द शास्त्र के प्रवर्तक आचार्य माने जाते हैं तथा इनके द्वारा रचित ‘छन्द: सूत्र’ रचना छन्दशास्त्र की सर्वप्रथम रचना मानी जाती है |
3 छन्द शास्त्र की सर्वप्रथम आचार्य मूलत: ब्रह्माजी ही माने जाते हैं |
छन्द के संघटक तत्व आठ हैं और वे इस प्रकार हैं –
1. चरण – छन्द कुछ पंक्तियों का समूह होता है और प्रत्येक पंक्ति में समान वर्ण या मात्राएँ होती हैं | इन्हीं पंक्तियों को ‘चरण’ या ‘पाद’ कहते हैं | प्रथम व तृतीय चरण को ‘विषम’ तथा दूसरे और चौथे चरण को ‘सम’ कहते हैं |
2. वर्ण – ध्वनि की मूल इकाई को ‘वर्ण’ कहते हैं | छंद शास्त्र में हृस्व , दीर्घ वर्ण समझे जाते हैं |
3. मात्रा – किसी वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसको मात्रा कहते हैं | छंद शास्त्र में मात्राओं का बहुत महत्त्व होता है हृस्व स्वरों की एक मात्रा व दीर्घ स्वरों की दो मात्राएँ होती हैं | जैसे – राम में ‘रा’ में दो मात्रा और ‘म’ में एक मात्रा है अर्थात् राम में तीन मात्राएँ हैं |
4. लघु – एक मात्रा वाला अक्षर छंद शास्त्र में में ‘लघु’ कहलाता है | इसके लिए ( | ) चिह्न का प्रयोग होता है | जैसे – कमल में तीन मात्राएँ हैं –
| | | = 3 मात्राएँ
क म ल
5. गुरु - दो मात्राओं वाला अक्षर ‘गुरु’ कहलाता है | दो मात्राओं को ( ऽ ) चिह्न से प्रकट किया जाता है | जैसे - गीता में चार मात्राएँ हैं –
ऽ ऽ = 4 मात्राएँ
गी ता
6. यति – यति का अर्थ है – विराम | प्रत्येक चरण के अंत में विराम होता है जिसको यति कहते हैं |
7. गति – छंद का प्रभाव गति कहलाता है |
8. गण – ‘गण’ का अर्थ होता है – ‘समूह’ | वर्णिक छंदों में तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं और मात्रिक छंदों में चार मात्राओं के समूह को गण कहते हैं | गण आठ प्रकार के होते हैं |
इसके लिए एक सूत्र दिया गया है – ‘य मा ता रा ज भा न स ल गा’
गण
|
लक्षण व स्वरूप चिह्न
|
उदाहरण
|
||
1.
|
यगण
|
आदि गुरु शेष लघु
|
| ऽ ऽ
|
सजाना
|
2. |
मगण
|
तीनों गुरु
|
ऽ ऽ ऽ
|
आज़ादी
|
3. |
तगण
|
अंत लघु
|
ऽ ऽ |
|
साकार
|
4. |
रगण
|
मध्य लघु
|
ऽ | ऽ
|
नीरजा
|
5. |
जगण
|
मध्य गुरु
|
| ऽ |
|
गणेश
|
6. | भगण | आदि गुरु | ऽ | | | मानस |
7. | नगण | सब लघु | | | | | कमल |
8. | सगण | अन्त गुरु | | | ऽ | रजनी |
छंद के प्रकार
1. सम छन्द - सम छन्द के चार चरण होते हैं और चारों की मात्राएँ या वर्ण समान ही होते हैं | जैसे –
रघु कुल रीति सदा चली आई
( | | | | ऽ | ऽ | ऽ ऽ ऽ ) = 16 मात्राएँ
प्राण जाइ पर बचन न जाई
( ऽ | ऽ | | | | | | | ऽ ऽ ) = 16 मात्राएँ
2. अदर्धसम छन्द – छंद के पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरणों की मात्राओं या वर्णों में परस्पर समानता होती है | जैसे -
माला फेरत जग मुआ , मिटा न मनका फेर |
( ऽ ऽ ऽ | | | | | ऽ ) ( | ऽ | | | ऽ ऽ | )
(13 मात्राएँ) (11 मात्राएँ)
कर का मनका डारि दे , मनका मनका फेर ||
( | | ऽ | | ऽ ऽ | ऽ ) ( | | ऽ | | ऽ ऽ | )
(13 मात्राएँ) (11 मात्राएँ)
3. विषम छन्द – इसमें चार से अधिक छ: चरण होते हैं और वे एक समान नहीं होते |
YouTube
0 comments: