Wednesday 20 June 2018

वर्ण विचार – स्थान व प्रयत्न की दृष्टि से (अल्पप्राण एवं महाप्राण व्यंजन) (घोष एवं अघोष ध्वनियाँ)

वर्ण
स्थान व प्रयत्न के दृष्टि से


वर्ण – भाषा की वह सबसे छोटी इकाई या मूल ध्वनि जिसके आगे खंड या टुकड़े नहीं हो सकते वर्ण कहलाती है | जैसे – 

अ , आ , इ , ई , ओ ,औ , क् , ख् ,च् , त् , थ् , ठ् इत्यादि |

वर्ण के भेद

  • स्वर
  • व्यंजन

स्वर – स्वर वे हैं ,जिनका उच्चारण बिना अवरोध या विघ्न – बाधा के होता है | स्वर इस प्रकार हैं-

ह्रस्व स्वर – अ , इ, उ, ऋ
दीर्घ स्वर – आ , ई ,ऊ
संयुक्त स्वर – ए ,ऐ , ओ , औ


व्यंजन – व्यंजन वे वर्ण हैं, जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है | इनका निम्न वर्गों में बाँटा गया है –



स्पर्श व्यंजनक वर्ग - क , ख , ग , घ , ङ

च वर्ग – च , छ , ज , झ , ञ

ट वर्ग – ट , ठ , ड, ढ , ण

त वर्ग – त , थ , द , ध , न

प वर्ग – प , फ , ब , भ , म
अंत:स्थ व्यंजन - य , र , ल , व
ऊष्मस्थ व्यंजन- श , ष , स , ह
संयुक्त व्यंजन- क्ष , त्र , ज्ञ , श्र
द्विगुण व्यंजन - ड़ , ढ़


 उच्चारण स्थान के आधार पर वर्णों का वर्गीकरण


किसी भी वर्ण के उच्चारण के लिए मुख के विभिन्न भागों का सहारा लेना पड़ता है | मुख के जिस भाग से वर्ण का उच्चारण किया जाता है , वह भाग उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहलाता है | उच्चारण स्थान के आधार पर वर्णों के भेद इस प्रकार हैं -

1 कंठ्य – जिनका उच्चारण कंठ से हो , कंठ्य वर्ण कहलाते हैं |
जैसे – अ , आ , कवर्ग , विसर्ग तथा ह

2 तालव्य - जिनका उच्चारण तालु से हो , तालव्य वर्ण कहलाते हैं |
जैसे – इ , ई , चवर्ग , य तथा श

3 मूर्धन्य - जिनका उच्चारण मूर्धा से हो , मूर्धन्य वर्ण कहलाते हैं |
जैसे – ऋ , टवर्ग , र तथा ष

4 दंत्य – जिनका उच्चारण दाँत के स्पर्श से हो , दंत्य वर्ण कहलाते हैं |
जैसे – लृ , ल , तवर्ग और स

5 ओष्ठ्य – जिनका उच्चारण होठ से हो , ओष्ठ्य वर्ण कहलाते हैं |
जैसे – उ , ऊ और पवर्ग

6 अनुनासिक – जिनका उच्चारण मुँह और नाक से होता है ,अनुनासिक वर्ण कहलाते हैं |
जैसे – अँ , आँ , इँ आदि

7 कंठ तालव्य – जिन वर्णों का उच्चारण कंठ और तालु से हो, कंठ तालव्य कहलाते हैं |
जैसे – ए और ऐ

8 कंठोष्ठ्य - जिन वर्णों का उच्चारण कंठ और ओठ से हो, कंठोष्ठ्य कहलाते हैं |
जैसे – ओ तथा औ

9 दन्तोष्ठ्य - जिन वर्णों का उच्चारण दाँत और ओठ से हो, दंतोष्ठ्य कहलाते हैं |
जैसे – व

उच्चारण स्थान की तालिका



उच्चारण – स्थानवर्गों के नामउच्चरित वर्ण
कंठकंठ्य वर्णअ , आ ,कवर्ग , विसर्ग और ह
तालुतालव्य वर्णइ , ई , चवर्ग , य और श
मूर्धामूर्धन्य वर्णऋ , टवर्ग , र और ष
दंतदंत्य वर्णलृ , ल , तवर्ग और स
ओष्ठओष्ठ्य वर्णए और ऐ
कंठ तालव्यकंठ – तालव्य वर्णउ , ऊ और पवर्ग
कंठोष्ठ्यकंठोष्ठ्य वर्णओ तथा औ
दंतोष्ठ्यदंतोष्ठ्य वर्णउ , ऊ और पवर्ग




प्रयत्न के आधार पर वर्णों का वर्गीकरण


1. स्पृष्ट व्यंजन – जिन व्यंजनों के उच्चारण में श्वास का जीभ या होंठो से स्पर्श होता है तथा कुछ रूकावट के बाद स्फोट होता है और श्वास बाहर निकल जाती है ,उन्हें स्पृष्ट व्यंजन कहते हैं | क् से म् तक के 25 व्यंजन स्पृष्ट व्यंजन हैं |


2. स्पृष्ट संघर्षी व्यंजन – च वर्ग के बोलने में साँस कुछ घर्षण के साथ निकलती है इसलिए च् छ् ज् झ् ञ् को स्पृष्ट संघर्षी कहते हैं |


3. नासिक्य व्यंजन – ङ् ,ञ् , ण् , न् , म् व्यंजनों के उच्चारण में हवा नाक से निकलती है इसलिए उन्हें नासिक्य व्यंजन कहते हैं |


4. उत्क्षिप्त व्यंजन – ड़ और ढ़ व्यंजन का उच्चारण जीभ की नोक को उलट कर कठोर तालु को झटके के साथ कुछ दूर तक छूकर किया जाता है इसलिए इन्हें उत्क्षिप्त या द्विगुण / द्विस्पृष्ट व्यंजन कहते हैं |


5. लुंठित व्यंजन – र् के उच्चारण में साँस जीभ से टकराकर लुढ़कती – सी लगती है इसलिए र् को लुंठित व्यंजन कहा जाता है |


6. ईषत् स्पृष्ट व्यंजन – य् व् के उच्चारण में मुँह में क्रमश: जीभ व तालु तथा होंठो का स्पर्श क्षणिक व कम होता है इसलिए इन्हें ईषत् स्पृष्ट व्यंजन कहते हैं | य् तथा व् का उच्चारण अवरोध की दृष्टि से स्वर तथा व्यंजन के बीच का है अत: इन्हें अन्त:स्थ ( Semi Vowel ) व्यंजन भी कहा जाता है |



7. पार्श्विक व्यंजन – ल् के उच्चारण में साँस जीभ के दोनों पार्श्व अर्थात् बगल से निकलती है इसलिए यह पार्श्विक व्यंजन कहलाता है |


8. संघर्षी व्यंजन – श् , ष् , स् , ह् के उच्चारण के समय मुख के अंगों के परस्पर निकट आ जाने से वायु मार्ग संकीर्ण हो जाता है तथा हवा घर्षण के साथ निकलती है , इसलिए इन्हें संघर्षी व्यंजन कहा जाता है | इन वर्णों को बोलने में हवा रगड़ के साथ निकलती है और गरम अर्थात् ऊष्म हो जाती है इसलिए इन्हें ऊष्मस्थ व्यंजन कहा जाता है |



9. संयुक्त व्यंजन – क्ष ( क् + ष ) , त्र ( त् + र ) , ज्ञ ( ज् + ञ ) संयुक्त व्यंजन हैं |

10. अल्पप्राण एवं महाप्राण व्यंजन -

अल्पप्राण महाप्राण 
जिन व्यंजनों के उच्चारण में साँस की मात्रा कम लगानी पड़ती है |
वर्गों के पहला , तीसरा व पाँचवां वर्ण |

क , ग , ङ , च , ज् , ञ् 
जिन व्यंजनों के उच्चारण में साँस की मात्रा अधिक लगानी पड़ती है |

प्रत्येक वर्ग का दूसरा व चौथा वर्ण |

ख् , घ् , छ् , झ् 

11 घोष एवं अघोष ध्वनियाँ -


घोष या सअघोषअघोष
जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा के गले से निकलने में स्वरतंत्रियों में कंपन होता है |

वर्गों के तीसरा, चौथा व पाँचवां वर्ण तथा य् , र् ,ल् , व् , ह् |
जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा के गले से निकलने में स्वरतंत्रियों में कंपन नहीं होता है |

प्रत्येक वर्ग का पहला व दूसरा वर्ण
श् , ष् , स् और विसर्ग |
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