Monday 16 July 2018

Kavya Hetu [ काव्य हेतु ]

kavya hetu

काव्य हेतु [ Kavya Hetu ]


‘हेतु’ का शाब्दिक अर्थ है कारण , अत: ‘काव्य हेतु’ का अर्थ हुआ काव्य की उत्पत्ति का कारण | किसी व्यक्ति में काव्य रचना की सामर्थ्य उत्पन्न कर देने वाले कारण काव्य हेतु कहलाते हैं | दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि काव्य ‘कार्य’ है और हेतु कारण है | 

भारतीय विद्वानों के अनुसार तीन काव्य हेतु माने गए हैं –
1 प्रतिभा ( जन्मजात गुण )
2 व्युत्पत्ति ( व्याकरणिक व साहित्यिक तत्वों का ज्ञान )
3 अभ्यास ( निरंतर अध्ययन )

काव्यहेतुओं का सर्वप्रथम विवेचन ‘अग्निपुराण’ में प्राप्त होता है | अग्निपुराण में निम्न हेतु दिए गए हैं – 
1 प्रतिभा
2 वेदज्ञान
3 लोक व्यवहार

जैसे – 
नरत्वं दुर्लभं लोक विद्या तत्र सुदुर्लभा |
कवित्वं दुर्लभं तत्र शक्तिस्तत्र सुदुर्लभा ||

अर्थात् लोक में नरत्व दुर्लभ है और उसमें विद्यावान नर होना दुर्लभ है | कवित्व दुर्लभ है और कविता करने की शक्ति (प्रतिभा) तो और भी दुर्लभ है | 

संस्कृत आचार्यों के अनुसार काव्य हेतु -

1. आचार्य भामह भामह के अनुसार गुरु के उपदेश से जड़ बुद्धि भी शास्त्र अध्ययन करने में समर्थ हो सकता है ,किन्तु काव्य तो किसी ‘प्रतिभाशाली’ द्वारा ही रचा जा सकता है | 
यथा – गुरुदेशादध्येतुं शास्त्रं जड़धिमोडप्यलम् |
काव्यं तु जायते जातु कस्यचित् प्रतिभावत: ||

स्पष्ट है कि भामह ‘प्रतिभा’ के साथ – साथ व्युत्पत्ति एवं अभ्यास को भी काव्य हेतुओं में स्थान देने के पक्षधर हैं |


2 आचार्य दण्डी – दण्डी ने अपने ग्रन्थ ‘काव्यादर्श’ में प्रतिभा , अभ्यास और लोकव्यवहार को काव्य हेतुओं के रूप में मान्यता दी है | उनकी मान्यता के अनुसार – 
नैसर्गिकी च प्रतिभा श्रुतं च बहुत निर्मलम् |
आनंदाश्चाभियोगो अस्या: कारणं काव्य सम्पदा ||

अर्थात् नैसर्गिक प्रतिभा , निर्मल शास्त्र , ज्ञान और बढ़ा – चढ़ा अभ्यास काव्य सम्पत्ति में कारण होते हैं | 


3. आचार्य वामन – वामन ने अपने ग्रन्थ ‘काव्यालंकार’ में प्रतिभा को जन्मजात गुण मानते हुए इसे प्रमुख काव्य हेतु स्वीकार किया गया है – 

“कवित्व बीजं प्रतिभानं कवित्वस्य बीजम् |”
प्रतिभा के अतिरिक्त वे लोकव्यवहार ,शास्त्रज्ञान, शब्दकोष आदि की जानकारी को भी काव्य हेतुओं में स्थान देते हैं | 


4. आचार्य रुद्रट ये प्रतिभा , व्युत्पत्ति व अभ्यास को काव्य के हेतु स्वीकार करते हैं | उनके अनुसार प्रतिभा के दो भेद हैं – 
1 सहजा ( जो कवियों में जन्मजात) तथा 2 उत्पाद्या ( लोकशास्त्र व अभ्यास से उत्पन्न ) होती है | 

5. आचार्य मम्मट मम्मट ने ‘काव्यप्रकाश’ में लिखा है – 

शक्तिर्निपुणता लोकशास्त्र काव्याद्यवेक्षणात् |
काव्यज्ञशिक्षयाभ्यास इति हेतुस्तदुद्भवे || 

अर्थात् काव्य के तीन हेतु हैं – शक्ति (प्रतिभा) लोकशास्त्र का अनवेक्षण तथा अभ्यास |दूसरे स्थान पर वे यह भी कहते हैं – ‘शक्ति’ काव्य का बीजसंस्कार है | 

6. पंडितराज जगन्नाथ इन्होंने ‘रसगंगाधर’ में ‘प्रतिभा’ को ही प्रमुख काव्य हेतु स्वीकार किया है – 
“ तस्य च कारणं कविगता केवलं प्रतिभा |” 


काव्य हेतुओं का स्वरूप

1. प्रतिभा प्रतिभा वह शक्ति है जो किसी व्यक्ति को काव्य रचना में समर्थ बनाती है |
राजशेखर के अनुसार प्रतिभा है – 
सा शक्ति: केवल काव्य हेतु: |

आचार्य वामन का मत है कि प्रतिभा जन्म से प्राप्त संस्कार है जिसके बिना काव्य रचना संभव नहीं है | 

आचार्य अभिनव गुप्त ने प्रतिभा की परिभाषा देते हुए लिखा है –

“प्रतिभा अपूर्व वस्तु निर्माण क्षमा प्रज्ञा:”


वक्रोक्ति संप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य कुन्तक ने प्रतिभा उस शक्ति को माना है जो शब्द और अर्थ की अपूर्व सौन्दर्य की सृष्टि करती है | अनेक प्रकार के अलंकारों व उक्ति वैचित्र्य आदि का विधान करती है | 



आचार्य मम्मट ने प्रतिभा को एक नया नाम दिया | वे इसे ‘शक्ति’ कहते हैं और काव्य का बीज स्वीकार करते हैं जिसके बिना काव्य की रचना असंभव है | 

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है –
1 प्रतिभा काव्य का मूल हेतु है |
2 यह ईश्वर प्रदत्त शक्ति है |
3 प्रतिभा दो प्रकार की होती है – 
1 कारयित्री प्रतिभा और 2 भावयित्री प्रतिभा |

(क) कारयित्री प्रतिभा वह होती है जिसके बल पर कवि कविता लिखता है | 
(ख) भावयित्री प्रतिभा वह होती है जिसके बल पर कोई पाठक कविता को समझाता है | 

2. व्युपत्ति – इसका शाब्दिक अर्थ है – निपुणता , पाडित्य या विद्वता | ज्ञान की उपलब्धि को भी व्युपत्ति कहा गया है | संस्कृत आचार्यों ने व्युपत्ति को काव्य हेतुओं में दूसरा स्थान दिया है | व्युत्पत्ति के बल पर ही कोई व्यक्ति यह निर्णय कर पाता है कि किस स्थान पर किस शब्द का प्रयोग उचित होगा | सच तो यह है कि प्रतिभा और व्युपत्ति समवेत रूप से ही काव्य के हेतु हैं | 

हिंदी आचार्य राजशेखर के अनुसार – उचितानुचित विवेकौ व्युपत्ति: अर्थात् उचित – अनुचित का विवेक ही व्युपत्ति है | 

3. अभ्यास - काव्य निर्माण का तीसरा हेतु अभ्यास है | भामह ने लिखा है कि शब्दार्थ के स्वरूप का ज्ञान करके सतत अभ्यास द्वारा उसकी उपासना करनी चाहिए , साथ ही अन्य कवियों के कृतित्व का अध्ययन भी करना चाहिए | आचार्य वामन ने भी अभ्यास को महत्त्व देते हुए लिखा है – 

‘अभ्यासेन हि कर्मसु कौशलं भावहिति |’ 
अर्थात् अभ्यास के द्वारा ही कवि कर्म में कुशलता प्राप्त की जा सकती है | 

आचार्य दण्डी ने तो अभ्यास को ही काव्य का हेतु माना है | हिंदी आचार्यों ने अभ्यास के महत्त्व को निम्न शब्दों में स्वीकारा है – 

करत – करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान | 
रस आवत जात तें सिल पर परत निसान |

सम्पूर्ण विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रतिभा , व्युत्पत्ति और अभ्यास ही काव्य के हेतु हैं ; किन्तु प्रतिभा सर्वप्रमुख है जिसे व्युपत्ति व अभ्यास से निरंतर निखारा जा सकता है | 

हिंदी आचार्यों के अनुसार काव्य हेतु -

1. रामचन्द्र शुक्ल – शुक्ल जी ने प्रतिभा को काव्य का मुख्य हेतु मानते हुए व्युत्पत्ति और अभ्यास को भी महत्त्व प्रदान किया है | 


2. सोमनाथ –किसी कवि की रचना को श्रवण कर पुन: पुन: अभ्यास करना काव्य का हेतु है| 

3. प्रतापसाहि – संस्कार , वृति और अभ्यास को ये काव्यहेतु मानते हैं , जो क्रमश: शक्ति ,व्युत्पत्ति , और अभ्यास के वाचक हैं | 

4. अज्ञेय – इन्होंने प्रतिभा को ही मूर्धन्य स्थान दिया है | 

5. दिनकर – इन्होंने प्रतिभा , व्युत्पत्ति और अभ्यास को ही सामूहिक रूप से काव्य - सृजन का हेतु माना है | 

काव्य हेतुओं के संदर्भ में पाश्चात्य मत -

1. प्लेटो – प्लेटो ने ‘प्रेरणा’ को काव्य हेतु माना है और यह मत प्रतिपादित किया है कि प्रेरणा के अभाव में कोई स्फुरण अम्भव नहीं है | 

There is no invention in him until he has been inspired. 

2. अरस्तू – इन्होंने प्रतिभा को महत्त्व दिया है और यह कहा है कि प्रतिभा जन्मजात होती है | 
A man of born talent. 

3. होरेस – होरेस ने प्रतिभा के साथ – साथ अभ्यास को भी महत्त्व दिया है | 
For my part I fail to see the use of study without wit or of wit without training. 

4. बेनदेतो क्रोचे – क्रोचे ने स्वयं प्रकाश ज्ञान (Intuition) और बाह्य व्यंजना (Expression) को महत्त्व देते हुए प्रतिभा और अभ्यास को काव्य हेतु के रूप में विशेष महत्त्व प्रदान किया है | 

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1 comment:

  1. जी बहुत ही अच्छी पाठ्यसामग्री

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