Wednesday 22 April 2020

अरस्तू का विरेचन – सिद्धांत

( A Theory of Catharsis)

 उनके गुरु प्लेटो के अनुकृति – सिद्धांत के विरोध का परिणाम है | अरस्तू की मान्यता है कि काव्य के अनुशीलन और प्रेक्षण से अतिरिक्त मनोविकार विरेचित होकर शमित और परिष्कृत हो जाते हैं तथा इससे सह्दय को आनंद की प्राप्ति होती है |

विरेचन का अर्थ –

अरस्तू द्वारा मूल प्रयुक्त यूनानी शब्द कथार्सिस (Katharsis) है, जिसका हिंदी रूपांतरण ‘विरेचन’ है | विरेचन भारतीय चिकित्साशास्त्र ( आयुर्वेद ) का पारिभाषिक शब्द है और ‘कथार्सिस’ यूनानी चिकित्साशास्त्र का | रेचन , परिष्करण इत्यादि विरेचन के पर्यायवाची शब्द हैं |

विरेचन का अर्थ है – विचारों का निष्कासन या शुद्धि | चिकित्साशास्त्र में इसका अर्थ है – रेचक औषधियों द्वारा शरीर के अनावश्यक एवं अस्वास्थ्यकर पदार्थ का बाह्य निष्कासन कर शरीर व्यवस्था को शुद्ध और स्वस्थ करना | अरस्तू का कहना है कि त्रासदी , करुणा तथा त्रास भावनाओं का निष्कासन करती है | यह निष्कासन ही विरेचन या उसका कार्य है | अत: विरेचन का अर्थ है – बाह्य विकारों की उत्तेजना और उसके शमन के द्वारा मन की शुद्धि और शांति |

अरस्तू के विभिन्न व्याख्याकार और विरेचन का अर्थ –

अरस्तू के व्याख्याकारों ने विरेचन के चार अर्थ किए हैं |

1. चिकित्सापरक अर्थ – 

वर्जीज ,देचेज सरीखे विद्वानों ने विरेचन का चिकित्सापरक अर्थ प्रकट करते हुए कहा है कि जिस प्रकार रेचक द्वारा उदर की शुद्धि होती है | उसी प्रकार त्रासदी द्वारा मन को शुद्ध किया जाता है अर्थात् करुणा तथा त्रास के उद्रेक द्वारा मन के विकारों को दूर किया जाता है |

2 धर्मपरक अर्थ – 

प्रो. गिलबर्ट मर्रे के अनुसार यूनान में दिओन्युसथ नामक देवता से संबद्ध उत्सव अपने आप में एक प्रकार की शुद्धि का प्रकार था | इस उत्सव में उन्मादकारी संगीत का विधान किया जाता था, उसे सुनकर सुप्त अवांछित मनोविकार शमित हो जाया करते थे | डॉ. नगेन्द्र ने भी लिखा है कि यूनान की धार्मिक संस्थाओं में बाह्य विकारों द्वारा आंतरिक विकारों की शांति उनके शमन का उपाय अरस्तू को ज्ञात था | ऐसा हो सकता है कि अरस्तू को यहीं से विरेचन – सिद्धांत की प्रेरणा मिली हो |

3 कलापरक अर्थ – 

प्रो. बूचर के अनुसार – वास्तविक जीवन में करुणा और भय के भाव दूषित और कष्टप्रद तत्वों से युक्त रहते हैं | दुखांतकीय उत्तेजना में दूषित अंश के निकल जाने से वे कष्टप्रद के बदले आनंदप्रद बन जाते हैं | इस प्रकार कहा जा सकता है कि दुखांतक का कर्तव्य केवल करुणा और त्रास का उद्रेक नहीं वरन एक सुनिश्चित कलात्मक संतुष्टि प्रदान करना भी है | 

4 नीतिपरक अर्थ – 

कई अन्य व्याख्याकारों के अनुसार मनोविकारों की उत्तेजना द्वारा विभिन्न अंतर्वृतियों का समन्वय या मन की शांति और परिष्कृति ही विरेचन है |

विरेचन की विशिष्टताएँ – 

जिन व्याख्याकारों के अनुसार अरस्तू का यह सिद्धांत पूर्ण सिद्धांत है उन्होंने इसकी कुछ विशिष्टताएँ भी बताई हैं, जो इस प्रकार हैं –

1 विरेचन के लिए भय और करुणा के भावों का सम्यक् नियोजन और प्रदर्शन आवश्यक है |
2 घटनाओं के तथा नायक के चयन में बड़ी सावधानी अपेक्षित है |
3 विरेचन यद्यपि दुखात्मक परिस्थितियों और घटनाओं के प्रदर्शन से होता है परन्तु आनंदानुभूति , आत्मपरिष्कार से नैतिक बल तथा धार्मिक संतुष्टि की प्राप्त होती है |
4 इसमें कलात्मक आनंदानुभूति, आत्मपरिष्कार से नैतिक बल तथा धार्मिक संतुष्टि की प्राप्ति होती है |

विरेचन – सिद्धांत पर आक्षेप 

अनेक समीक्षकों ने विरेचन - सिद्धांत की आलोचना की है |

1 एवरे मांड ने इस सिद्धांत को निरर्थक बताया है और कहा है कि यह सिद्धांत ग्रहण करने योग्य नहीं है तथा यह समझ से परे भी है | 

2 लूकस जैसे आलोचकों का मत है कि त्रासदी न तो मानसिक रोगों की औषधि है न रंगशाला बल्कि यह एक अस्पताल है | 

3 आलोचक यह भी आरोप लगाते हैं कि त्रासदी में प्रदर्शित भाव अवास्तविक होते हैं जो हमारे भावों को उत्तेजित नहीं करते, विरेचन की बात तो बहुत दूर है |

निष्कर्ष – विरेचन – सिद्धांत साहित्यशास्त्र की एक महत्त्वपूर्ण एवं विशिष्ट उपलब्धि है | अरस्तू के विरेचन – सिद्धांत की तुलना अभिनवगुप्त के अभिव्यक्तिवाद से की जाती है क्योंकि दोनों विद्वान काव्यानंद या रसास्वादन के मूल में वासनाओं के रेचन की बातें कहते हैं | वस्तुतः अरस्तू का यह सिद्धांत उनकी एक महान उपलब्धि है |

YouTube:



Previous Post
Next Post
Related Posts

0 comments: