Tuesday 3 October 2017

संदेह अलंकार, दृष्टान्त अलंकार, अतिशयोक्ति अलंकार, स्वभावोक्ति अलंकार,मानवीकरण अलंकार,विभावना अलंकार


1. संदेह अलंकार – जहाँ दो वस्तुओं या क्रियाओं में इतनी समानता हो कि उसमें अनेक वस्तुओं के होने का संदेह हो और यह संदेह अंत तक बना रहे तो वहाँ संदेहालंकार होता है | इसमें या , अथवा ,किधौ ,किंवा, कि आदि वाचक शब्दों का प्रयोग होता है | जैसे - 


‘हरि -मुख यह आली ! किधौ, कैधौ उयो मयंक ?

हे सखी ! यह हरि का मुख है या चन्द्रमा उगा है ? यहाँ हरि के मुख को देखकर सखी को निश्चय नहीं होता कि यह हरि का मुख है या चन्द्रमा है |

सारी बीच नारी है, कि नारी बीच सारी है |
सारी है कि नारी है , कि नारी ही की सारी है |

ये छींटे हैं उड़ते , अथवा मोती बिखर रहे हैं ?

2. दृष्टान्त अलंकार – दृष्टांत का अर्थ है – उदाहरण | जब किसी बात को कहकर उसकी सत्यता प्रमाणित करने के लिए उसी ढंग की कोई दूसरी बात कही जाती है | जिससे पूर्व कथन की प्रमाणिकता सिद्ध हो जाए तब वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है |


दृष्टान्त अलंकार में दो स्वतंत्र वाक्य होते हैं ,किन्तु दोनों में एक ही मूल विचार रहता है ,अर्थात् दोनों के अर्थ समान ही होते हैं | दूसरे अर्थों में उपमेय व उपमान में जब बिम्ब – प्रतिबिम्ब का सम्बन्ध होता है तो वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है | जैसे - 

करत - करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान |

रसरी आवत जात ही सिल पर पड़त निसान ||



मनुष्य जन्म दुर्लभ अहे , होय न दूजी बार |

पका फल जो गिरी , बहुरी न लागे डार ||


3. अतिशयोक्ति अलंकार – जहाँ किसी वस्तु या बात का वर्णन अत्यधिक बढ़ा- चढ़ा कर किया जाए (लोक सीमा से बढ़ाकर किया जाए ) वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है | जैसे - 


हनुमान की पूँछ में , लगन न पाई आग |
लंका सगरी जल गई , गए निशाचर भाग ||


यहाँ हनुमान की पूँछ में आग लग भी नहीं पाई और सारी लंका जल गई | सारे राक्षस डरकर भाग गए |


धनुष उठाया ज्यों ही उसने ,और चढ़ाया उस पर बाण |
धरा – सिन्धु नभ काँपे सहसा , विकल हुए जीवों के प्राण || 

4. स्वभावोक्ति अलंकार – जब किसी वस्तु के स्वभाव का वैसा ही वर्णन किया जाए जैसी वह है , उसमें कुछ भी घटाया या बढ़ाया न जाए ; जैसे - 




भोजन करत चपल – चित ,इत -उत अवसर पाइ | 
भाजि चले किलकात मुख , दधि -ओदन लपटाय ||

यहाँ राम आदि बालकों के बाल – स्वभाव का स्वाभाविक वर्णन किया गया है |


5. मानवीकरण अलंकार – जहाँ जड़ वस्तु या प्रकृति पर मानवीय चेष्टाओं अथवा भावनाओं का आरोप हो वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है ; जैसे - 



मेघमय आसमान से 

उतर रही है 

संध्या सुन्दरी परी सी 

धीरे धीरे धीरे | 




नील परिधान बीच सुकुमार ,
खिल रहा मृदुल अधखुला अंग |

खिला हो ज्यों बिजली का फूल ,

मेघ बन बीच गुलाबी रंग ||



मेघ आए बड़े बन -ठन के सँवर के |


6. विभावना अलंकार – विभावना का अर्थ होता है – बिना कारण | जहाँ कारण के न होने पर भी कार्य का होना वर्णित होता है अर्थात् कारण के नहीं होने पर भी कार्य होता है , वहाँ विभावना अलंकार होता है ; जैसे -

 

बिन घनस्याम धाम – धाम ब्रज – मंडल में , 
ऊधो ! नित बसति बहार बरसा की है |

वर्षा कार्य के लिए बादल कारण विद्यमान होना चाहिए परन्तु यहाँ कहा गया है कि श्याम घन के न होने पर भी वर्षा की बहार रहती है |

बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय |



बिनु पग चले सुनै बिना काना |



कर बिनु कर्म करै विधि नाना |

नोट – जब अपूर्ण कारण से कार्य की उत्पत्ति हो , रुकावट होने पर भी कार्य हो जाए एवं जब विपरीत कारण से भी कार्य उत्पन्न हो जाए तो वहाँ भी विभावना अलंकार ही होता है ; जैसे - 

कारे घन उमड़ि अंगारे बरसत हैं |


घन से अंगारे नहीं ,पानी बरसता है , जो अंगारों का विरोधी है | परन्तु यहाँ कहा गया है कि घन अंगारे बरसाते हैं | यहाँ विपरीत कारण से कार्य की उत्पत्ति हुई है |


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