स्त्रोत या उत्पत्ति के आधार पर -
१. तत्सम – तत् + सम से मिलकर बना है जिसका अर्थ है - उसके समान या ज्यों का त्यों | अर्थात वे शब्द जो संस्कृत से लिए गए हैं और बिना किसी परिवर्तन के अपने मूल रूप में ही हिंदी में प्रयोग किए जाते हैं , तत्सम शब्द कहलाते हैं |
२. तद्भव – तत् + भव से मिलकर बना है जिसका अर्थ है – उससे उत्पन्न अर्थात संस्कृत से उत्पन्न | वे संस्कृत के शब्द हिंदी में कुछ परिवर्तन के साथ प्रयोग किए जाते हैं , तद्भव शब्द कहलाते हैं
तत्सम और तद्भव शब्दों को पहचानने के नियम -
1) तत्सम शब्दों में ‘क्ष’ वर्ण का प्रयोग होता है जबकि तद्भव में ‘क्ष’ का प्रयोग न होकर उसके स्थान पर ‘ख’ या ‘छ’ का प्रयोग होता है |
जैसे -
१. तत्सम – तत् + सम से मिलकर बना है जिसका अर्थ है - उसके समान या ज्यों का त्यों | अर्थात वे शब्द जो संस्कृत से लिए गए हैं और बिना किसी परिवर्तन के अपने मूल रूप में ही हिंदी में प्रयोग किए जाते हैं , तत्सम शब्द कहलाते हैं |
२. तद्भव – तत् + भव से मिलकर बना है जिसका अर्थ है – उससे उत्पन्न अर्थात संस्कृत से उत्पन्न | वे संस्कृत के शब्द हिंदी में कुछ परिवर्तन के साथ प्रयोग किए जाते हैं , तद्भव शब्द कहलाते हैं
तत्सम | तद्भव |
अक्षि | आँख |
अक्षर | अच्छर |
अंगरक्षक | अँगरखा |
इक्षु | ईख |
कुक्षि | कोख |
क्षत्रिय | खत्री |
क्षार | खार |
क्षीर | खीर |
क्षत | छत |
पक्ष | पंख |
लक्ष | लाख |
लक्ष्मण | लखन |
ऋक्ष | रीछ |
2) तत्सम शब्दों में ‘श्र’ वर्ण आता है जबकि तद्भव शब्दों में ‘श्र’ का प्रयोग नहीं होता | अधिकतर स्थितियों में ‘श्र’ का ‘स’ में परिवर्तन हो जाता है |
जैसे -
तत्सम | तद्भव |
श्रृंग | सींग |
श्रृंगार | सिंगार |
श्रेष्ठी | सेठ |
श्रावण | सावन |
अश्रु | आँसू |
आश्रय | आसरा |
3) तत्सम शब्दों में ‘श’ वर्ण का प्रयोग होता है | तद्भव शब्दों में अधिकतर ‘श’ वर्ण के स्थान पर ‘स’ का प्रयोग होता है |
तत्सम | तद्भव |
आशीष | असीस |
अशीति | अस्सी |
चतुर्विंश | चौबीस |
यश | जस |
राशि | रास |
शाक | साग |
शलाका | सलाई |
श्यामल | साँवला |
शून्य | सूना |
शप्तशती | सतसई |
कुछ शब्द अपवाद भी होते हैं जिनमें ‘श’ के स्थान पर ‘स’ नहीं होता परन्तु उनका रूप परिवर्तित हो जाता है ;
जैसे -
तत्सम | तद्भव |
क्लेश | कलेश |
दिशांतर | दिशावर |
शर्करा | शक्कर आदि शब्द |
4) तत्सम शब्दों में ‘ष’ वर्ण का प्रयोग होता है |
तत्सम | तद्भव |
ओष्ठ | ओंठ |
काष्ठ | काठ |
कृषक | किसान |
कृष्ण | किसन |
कुष्ठ | कोढ़ |
चतुष्कोण | चौकोर |
चतुष्पद | चौपाया |
उष्ट्र | ऊँट |
5) तत्सम शब्दों में ‘ऋ’ की मात्रा का प्रयोग होता है |
तत्सम | तद्भव |
गृह | घर |
कृतगृह | कचहरी |
घृत | घी |
घृणा | घिन |
तृण | तिनका |
मृत्तिका | मिट्टी |
धृष्ठ | ढीठ |
6) तत्सम शब्दों में ‘र्’ की मात्रा का प्रयोग ( रेफ या पदेन ) होता है |
तत्सम | तद्भव ( रेफ के रूप में ) |
कर्पूर | कपूर |
कार्य | काज |
गर्जर | गाजर |
कार्तिक | कातिक |
गर्दभ | गधा |
कर्ण | कान |
तत्सम | तद्भव ( पदेन के रूप में ) |
ग्राम | गाँव |
चक्रवाक | चकवा |
ताम्र | ताँबा |
ग्रंथि | गाँठ |
निद्रा | नींद |
व्याघ्र | बाघ |
प्रहर | पहर |
7) ‘व’ वर्ण वाले तत्सम शब्द तद्भव शब्दों में ‘ब’ हो जाता है |
तत्सम | तद्भव |
वानर | बन्दर |
वणिक | बनिया |
वत्स | बच्चा / बछड़ा |
वाणी | बैन |
वरयात्रा | बरात आदि |
कुछ अन्य कठिन तत्सम शब्दों के तद्भव रूप इस प्रकार हैं –
तत्सम | तद्भव |
तिथिवार | त्योहार |
दंतधावन | दतून |
पितृश्वसा | बुआ |
प्रतिवेश्मिक | पड़ोसी |
ताम्बूलिक | तमोली |
प्रत्यभिज्ञान | पहचान |
बलीवर्द | |
स्फोटक | फोड़ा |
आरात्रिका | आरती |